नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि सरकार अपने संसाधनों का इस्तेमाल बच्चों की भलाई या गुमशुदा बच्चों को खोजने के लिये नहीं करती है तो दुनिया में प्रौद्योगिकी ताकत के रूप में भारत का दर्जा सिर्फ कागजों पर ही सिमट कर रह जायेगा। शीर्ष अदालत ने किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों में प्रौद्योगिकी के प्रयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुये कहा कि वह यह जानकारी दुखी है कि इन संस्थाओं में कम्प्यूटरों और दूसरी चीजों की बहुत कमी है।
न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल गुमशुदा बच्चों का पता लगाने, खतरनाक उद्योगों में काम करने और बाल यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों का पता लगाने जैसे महत्वपूण मुद्दों में मददगार होगा। पीठ ने कहा, यह सर्वविदित है कि हमारा देश एक प्रौद्योगिकी ताकत है और यदि हम उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर पाये और बच्चों की भलाई के लिये कम्प्यूटरों और इंटरनेट के माध्यम से इस तकनीक का भरपूर उपयोग नहीं कर सके तो प्रौद्योगिकी ताकत के रूप में हमारी स्थिति प्रभावित होगी और यह सिर्फ कागज पर ही रह जायेगा।
पीठ ने कहा कि कम्प्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल करके गुमशुदा बच्चों का आंकड़ा तो सहजता से एकत्र किया जा सकता है। यह संसाधनों के प्रबंधन और योजना तैयार करने मे बहुत अधिक मददगार होगा और बाल विकास एवं महिला मंत्रालय और बाल अधिकारों के प्रति सरोकार रखने वाले अन्य लोगों को इसका भरपूर लाभ उठाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि केन्द्र और राज्यों को इस पहलू पर गौर करके किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों के कामकाज के लिये उन्हें इससे संबंधित साफ्टवेयर उपलब्ध कराने चाहिए। न्यायालय ने किशोर न्याय कानून और इसके नियमों पर अमल के लिये दायर जनहित याचिका पर इस संबंध में फैसला सुनाया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि कल्याणकारी उपायों को लागू करने के संबंध में सरकार पक्षपात कर रही है।