
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने इस संबंध में याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कॉमन कॉज तथा अन्य को चुनाव आयोग से 10 दिनों में संपर्क करने की अनुमति दी।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने पीठ के समक्ष कहा कि नए मुख्य चुनाव आयुक्त हैं। याचिकाकर्ता के प्रतिनिधि उनसे मिल सकते हैं। इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा।
एनजीओ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की गणना के अनुसार मतों की संख्या और वास्तविक मतदान के बीच विसंगतियां हैं। उन्होंने पूछा कि क्या नागरिकों को यह बुनियादी आंकड़ा जानने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग को अंतिम सूची में विसंगति के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपने प्रतिनिधित्व के साथ चुनाव आयोग से संपर्क करें।
पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ताओं ने जो सवाल उठाया है वह एक बड़ा मुद्दा था, हालांकि, उम्मीदवारों को जानकारी मिलती है।”
चुनाव आयोग ने मई, 2024 में अपने हलफनामे में शीर्ष अदालत को बताया था कि वेबसाइट पर फॉर्म 17सी (प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं द्वारा डाले गए मतों का लेखा-जोखा) अपलोड करने से गड़बड़ी हो सकती है। इससे छवियों के साथ छेड़छाड़ की संभावना है। आयोग ने कहा कि इससे ‘काफी असुविधा और अविश्वास’ पैदा हो सकता है।
आयोग ने यह भी दावा किया कि अंतिम मतदाता मतदान आंकड़े में 5 से 6 फीसदी की वृद्धि के संबंध में लगाए गए आरोप ‘भ्रामक और निराधार’ थे। उसने यह भी कहा कि फॉर्म 17सी के संपूर्ण खुलासे से पूरे चुनावी क्षेत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
हलफनामे में कहा गया है, ‘फिलहाल, मूल फॉर्म 17सी केवल स्ट्रांग रूम में उपलब्ध है और इसकी एक प्रति केवल मतदान एजेंटों के पास है (जिनके हस्ताक्षर उस पर हैं।) इसलिए प्रत्येक फॉर्म 17सी और उसके धारक के बीच सीधा संबंध है।”
आयोग ने अपने हलफनामे में कहा है कि उम्मीदवार या उसके प्रतिनिधि के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17सी प्रदान करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है।