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जानिये, मुलायम सिंह ने कैसे सरकायी, शिवपाल यादव के पैरों तले जमीन…

लखनऊ, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने तमाम अटकलों और कयासों पर विराम लगाते हुए आज स्पष्ट कर दिया कि वह कोई नई पार्टी नहीं बनाने जा रहे हैं और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उनके बेटे हैं लिहाजा उनके साथ उनका आशीर्वाद है. उन्होंने समाजवादी विचारधारा के लोगों से अपील की कि वह सपा से जुड़ें. 

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समाजवादी पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई मे जन सामान्य अखिलेश यादव को विजेता समझ रहा है. पर हकीकत यह है कि यह लड़ाई केवल सपा संरक्षक मुलायम सिंह जीते हैं और शिवपाल सिंह, साधना गुप्ता, अमर सिंह हारे हैं. यह हकीकत है कि मुलायम सिंह कुछ भी कहें पर वह न कल अपने बेटे अखिलेश यादव से अलग थे और न आज हैं.

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जो हुआ, दरअसल इस की स्क्रिप्ट, मुलायम सिंह उस समय ही लिख चुके थे, जब अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह के बीच विवाद की शुरूआत के साथ- साथ परिवार मे भी अखिलेश यादव को सत्ता सौंपने को लेकर मन मुटाव शुरू हुआ था. 2012 मे यूपी मे अखिलेश यादव के नेतृत्व मे सपा सरकार बनने के बाद से ही परिवार मे तल्खियां कुछ ज्यादा बढ़ गईं थीं. लेकिन मुलायम सिंह की दिली इच्छा, हर पिता की भांति सत्ता के साथ-साथ पार्टी भी अपने बेटे अखिलेश यादव को सौंपने की थी. लेकिन उनकी इस चाह मे उनकी पत्नी साधना गुप्ता, भाई शिवपाल सिंह और परम मित्र अमर सिंह बड़े रोड़े थे.

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उस समय की स्थिति भी आज की उलट थी. परिवार, पार्टी और मित्र शिवपाल सिंह के साथ थे. पत्नी साधना गुप्ता, अखिलेश से ज्यादा शिवपाल सिंह पर विश्वास करतीं थीं. मित्र अमर सिंह, अखिलेश से ज्यादा शिवपाल सिंह का साथ पसंद करते थे. तब समाजवादी पार्टी मे  भी शिवपाल सिंह की नंबर दो की हैसियत थी. संगठन और कार्यकर्ताओं मे भी शिवपाल सिंह की पकड़ अखिलेश यादव से कहीं ज्यादा मजबूत थी.

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 इसलिये मुलायम सिंह को यह अच्छी तरह एहसास था कि अगर शिवपाल ने बगावत की तो विधायकों का सबसे बड़ा गुट शिवपाल सिंह के साथ होगा और मेरे बेटे की सरकार गिर जायेगी. बस यहीं पर, मुलायम सिंह ने एक सधे हुये राजनीतिग्य की भांति अपना चरखा दांव चल  दिया.

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मुलायम सिंह की ये फितरत है कि वह जिससे सबसे ज्यादा प्यार करतें हैं उस पर वह सार्वजनिक रूप से सबसे ज्यादा गुस्सा करतें हैं और जिसका नुकसान करना होता है सार्वजनिक तौर पर उसकी सबसे ज्यादा तारीफ करतें हैं, उससे सबसे ज्यादा निकटता दिखातें हैं. जिससे कोई भी व्यक्ति अंत तक  मुलायम सिंह के मन की बात को भांप नही पाता है.

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अपनी लिखी स्क्रिप्ट के अनुसार, मुलायम सिंह ने कई बार यह दर्शाने की भी कोशिश की कि वह अखिलेश से ज्यादा शिवपाल सिंह को चाहतें हैं और शिवपाल सिंह के लिये बेटे को भी छोड़ सकतें हैं. मुलायम सिंह कई सार्वजनिक मौकों पर, अखिलेश यादव का अपमान करते रहे. वहीं कई सार्वजनिक मौकों पर, उन्होने अपने अनुज शिवपाल सिंह यादव की तारीफ की.

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कई बार अखिलेश यादव को झिड़कते हुये कहा कि सुधर जाओ, तुम अभी शिवपाल को नही जानते, अगर वह सपा छोड़ गया तो सारे विधायक उसके साथ चले जायेंगे और मै भी शिवपाल के साथ खड़ा दिखायी दूंगा. इस बीच, शिवपाल सिंह यह सुनकर फूलकर कुप्पा हो जाते थे कि मेरा बड़ा भाई अपने बेटे से ज्यादा मुझे महत्व दे रहा है. वह भी मुलायम सिंह की फितरत को भांप नही पाये कि आखिर मुलायम सिंह चाहते क्या हैं.

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अखिलेश यादव, एक आज्ञाकारी बेटे की तरह, पिता के इस अपमान को लगातार बर्दाश्त करते रह पर लखनऊ मे समाजवादी पार्टी मुख्यालय मे हुये सम्मेलन मे उनका सब्र का बांध टूट गया और अखिलेश यादव ने मंच से पहली बार मुलायम सिंह द्वारा उन्हे सार्वजनिक तौर पर बार-बार अपमानित किये जाने की बात कही. क्योंकि वह अपने पिता की फितरत से परिचित नही थे कि आखिर पिता के मन मे उनके लिये क्या है.

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जबकि यह सब मुलायम सिंह की लिखी स्क्रिप्ट का ही हिस्सा था, दरअसल वह अखिलेश यादव को पार्टी मे धीरे-धीरे मजबूत कर रहे थे और शिवपाल सिंह की जमीन खिसकाते जा रहे थे. उसी का परिणाम है कि आज स्थिति बिल्कुल उलटी हो गई है. अब समाजवादी पार्टी मे अखिलेश यादव की नंबर एक की हैसियत है और शिवपाल की जमीन पूरी तरह खिसक चुकी है. जिसे शिवपाल सिंह जैसा नेता भी नही समझ पाया जो सबसे ज्यादा मुलायम सिंह के साथ रहा और उनकी रग-रग से वाकिफ रहा.

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शिवपाल सिंह को इस स्थिति मे लाने के बाद, मुलायम सिंह ने अपनी स्थिति भी स्पष्ट कर दी है. लोहिया ट्रस्ट की प्रेस कांफ्रेंस मे उन्होने साफ कह दिया कि वह केवल समाजवादी पार्टी के साथ हैं और सबको मालूम है कि  समाजवादी पार्टी आज अखिलेश यादव के हाथ मे है.

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