नयी दिल्ली,लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का उम्मीद के अनुसार प्रदर्शन नहीं होने के कारण चल रहे पार्टी में मंथन एवं समीक्षाओं के बीच भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने बुधवार को यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
भाजपा में संगठन एवं सरकार में बड़ा कौन मुद्दा गरमाने के बाद श्री भूपेन्द्र सिंह चौधरी और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से अलग-अलग मुलाकात की, जिससे राज्य के नेतृत्व को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है।
माना जा रहा है कि श्री चौधरी ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस राज्य में पार्टी के संगठनात्मक मामलों से संबंधित कई मुद्दों से प्रधानमंत्री को अवगत कराया। सूत्रों के अनुसार श्री चौधरी ने केंद्रीय नेतृत्व को राज्य में होने वाले उपचुनाव की तैयारियों और संगठन-सरकार के बीच चल रही तनातनी को लेकर रिपोर्ट सौंपी है। श्री चौधरी ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद श्री शाह से भेंट की। सूत्रों के अनुसार, श्री नड्डा ने कल श्री चौधरी को सरकार और संगठन के मनमुटाव की चर्चाओं को रोकने के लिए कहा है।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले कम सीटें पाने के बाद प्रदेश के नेतृत्व को लेकर भाजपा के भीतर अलग-अलग आवाजें उठ रही हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री श्री मौर्य के बीच मतभेदों की खबरों को तब हवा मिली जब श्री मौर्य ने 14 जुलाई को लखनऊ में हुई पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में कहा कि ‘संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है’। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी इस बैठक में उपस्थित थे।
श्री मौर्य के बयान को योगी आदित्यनाथ पर हमले के रूप में देखा गया। इस बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में चुनावी हार के लिए अति आत्मविश्वास को भी परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि पार्टी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के प्रचार अभियान का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर सकी।
श्री नड्डा से मुलाकात के अगले ही दिन उपमुख्यमंत्री श्री मौर्य ने बुधवार को फिर से ‘संगठन, सरकार से बड़ा है’ वाला बयान दोहराया। श्री मौर्य के कार्यालय ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “संगठन सरकार से बड़ा है, कार्यकर्ताओं का दर्द मेरा दर्द है। संगठन से बड़ा कोई नहीं, कार्यकर्ता ही गौरव हैं।”
हालांकि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से श्री मौर्य और श्री चौधरी से बात करने की पहल को 10 विधानसभा सीटों के आगामी उपचुनावों से पहले संगठन में खामियों को दुरुस्त करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा के लिए इन सीटों पर जीतने का दबाव है। विधानसभा की जिन सीटों पर चुनाव कराये जाने हैं उनमें से भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और समाजवादी पार्टी के पास पांच-पांच सीटें थीं। लोकसभा चुनाव में विपक्ष के प्रदर्शन और भाजपा को लगे झटके के बाद संगठन में चल रही खींचतान भाजपा के लिए चिंता का विषय बनी हुई है क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से भाजपा के एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने में उत्तर प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
उधर योगी आदित्यनाथ के समर्थक उन्हें एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं क्योंकि उन्होंने पार्टी के हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया है और कानून-व्यवस्था पर मजबूत पकड़ बनाए रखी है।
पार्टी के सूत्रों ने स्वीकार किया कि राज्य में कई नेताओं की टिप्पणियों ने एक अनुशासित पार्टी के रूप में भाजपा की छवि को धूमिल किया है। हालांकि निराशाजनक चुनाव परिणामों के बाद नेताओं के अपनी मन की भावनाओं को बाहर निकालना अनपेक्षित नहीं है।
लोकसभा चुनावों में, समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के ‘इंडिया’ गठबंधन ने राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 43 पर जीत हासिल की है जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 36 सीटें जीती हैं। राजग को 2014 में 75 और 2019 में 64 सीटें मिली थीं।