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भुखमरी के कगार पर पहुंचे, रेलवे वाष्प इंजन के मजदूरों में जगी आस

indian_railway-svgनई दिल्ली/कोलकाता,  देश में हो रहे तकनीकी विकास ने हमारे जीवन को बहुत आसान बनाया है, किन्तु बगैर समुचित योजना के हो रहे इस विकास ने हजारों परिवारों को भूखमरी की गर्त में धकेल दिया है। वहीं आम जन और गरीबों की चिंता का दावा करने वाली सरकारें वर्षों पहले बंद हुए कोयला वाष्प इंजन से संबंधित विभिन्न कार्यों में काम कर चुके ठेका मजदूरों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी उन्हें न तो स्थाई रूप से नौकरी पर रखीं न हीं उनके कल्याण एवं रोजी-रोटी के लिए कोई योजना की घोषणा की। बावजूद इसके भूखमरी के साथ साल-दर-साल बीतने के बाद भी इन मजदूरों का भरोसा कोर्ट के आदेशों में बना हुआ है साथ हीं यह उम्मीद भी बनी हुई है कि अब यह भाजपा सरकार कोलकाता हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए इन्हें नौकरी पर रखेगी। वहीं लोक सभा सदस्य श्रीमती मौसम नूर ने इस संबंध में पत्र लिखकर रेल मंत्री का ध्यान इस ओर खींचा था। नूर के पत्र का जवाब देते हुए रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा है कि वह स्वयं मामले की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि जल्द ही इन मजदूरों को उनका हक दिलाया जाएगा।

हालांकि रेलवे के आला अधिकारी अब तक के सरकारों की गंभीर रूची नहीं दिखाने के कारण इस आदेश के पालन से बचते रहे हैं। रेलवे बोर्ड से जुडे सूत्रों का कहना है कि भाजपा सरकार अदालतों के आदेशों के अनुपालन को लेकर बेहद गंभीर है। सूत्र बताते हैं कि वर्षों से लंबित कोर्ट के आदेशों के अनुपालन के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करने की तैयारी चल रही है। ये अधिकारी अपने स्तर पर अदालतों के आदेशों का विश्लेषण करेंगे तथा तकनीकी कमियों को दूर कर अदालत के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करेंगे। रेल मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि वाष्प इंजन से जुडे ठेका मजदूरों से संबंधित कोर्ट के आदेशों का अब तक पालन हीं होने पर मंत्रालय ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया था। अधिकारियों द्वारा भेजे गए जवाब का मंत्रालय विश्लेषण कर रहा है। उन्होंने बताया कि विश्लेषण के बाद इसके निष्पादन में आ रही दिक्कतों को दूर कर आदेशों का जल्द से जल्द अनुपालन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि वर्षों पहले कोयला वाष्प इंजन से जुडे कार्यों में हजारों ठेका मजदूर काम कर अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। तत्कालीन ठेका मजदूरी से जुडे कानून के अनुसार निर्धारित दिनों के दैनिक हाजिरी के आधार पर इन्हें नियमित मजदूर का दर्जा देना सरकार की बाध्यता थी।

किन्तु पूर्वी रेलवे के अन्तर्गत आने वाले नारकल डान्गा, नइहटी, शान्तिपुर, केष्टोपुर, बारासात, वनगांव आदि केन्द्रों पर सालों से लगातार कार्य करने वाले इन मजदूरों पर उस समय वज्रपात हो गया जब सरकार ने इन मजदूरों के पुनर्वास की कोई योजना तैयार किए बगैर वाष्प इंजन को बंद कर दिया। जिसके कारण वर्षों से एक ही जगह काम करने वाले इन मजदूरों के सामने भूखमरी की स्थिति आ गई। इन हजारों मजदूरों के दयनीय स्थिति को देखते हुए केसी ढाली की अध्यक्षता में नाॅर्थ बेंगाल कन्ट्रेक्ट एंड कन्सट्रक्शन सोसाइटी ने आॅल इंडिया बैकवाॅर्ड फेडरेशन के सेकरेटरी अर्जुन प्रसाद तथा अन्य कई समाज सेवी संगठनो के सहयोग से रेलवे के इस अपरिपक्व निर्णय को कोलकाता हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोलकाता हाई कोर्ट ने 1998 में रेलवे को वाष्प इंजन से जुड़े सभी ठेका मजदूरों को स्थाई रूप से नौकरी पर रखने का आदेश दिया। इसी केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश जारी करते हुए रेलवे को यथा शीघ्र ठेका मजदूरों को स्थाई रूप से नौकरी पर रखने का आदेश दिया। अदालतों के आदेशों के बाद भी आज तक रेलवे के अधिकारी तकनीकी खामी बताते हुए आदेशों के पालन से बचते रहे। अब वर्तमान सरकार द्वारा इन आदेशों पर उठाए जा रहे कदम से रेलवे वाष्प इंजन से संबंधित ठेका मजदूरों में आशा की किरण जगी है।

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