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मंच शिवपाल का, रणनीति मुलायम की और ब्रांडिग हुयी अखिलेश की

shivpalलखनऊ, सपा के रजत जयंती समारोह के जरिए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने अपनी ताकत दिखाई। इससे एक दिन पहले  मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विकास रथ की यात्रा की शुरुआत कर अपना दमखम दिखाने की कोशिश की थी। रजत जयंती समारोह में शिवपाल का जलवा साफ नजर आया। लेकिन, मेहमानों ने जब अखिलेश की तारीफ शुरू की तो उनकी बौखलाहट भी सामने आ गई। भावावेश में शिवपाल एक बार फिर पुरानी बातें बोल गए।

मंच शिवपाल का:- रजत जयंती समारोह का सारा इंतजाम शिवपाल का था। शिवपाल इस मंच से ही संगठन में अपनी पकड़ दिखाना चाहते थे। जिसमें काफी हद तक वे कामयाब भी रहे। यह शिवपाल का ही रुतबा था कि एक भी अखिलेश समर्थक बर्खास्त नेता कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ। अखिलेश मंत्रिमंडल से बर्खास्त मंत्री मंच के इर्द गिर्द ही थे। जबकि अखिलेश के लिए खुलकर सामने आने वाले रामगोपाल यादव की भी इंट्री नहीं हुई। मंच से अखिलेश के नाम के कसीदे पढ़ रहे सपा नेता जावेद आब्दी को धक्का मारकर हटा दिया गया। अखिलेश पर जमकर निशाना साधा। मंच पर पहली बार डिंपल के बगल मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव नजर आईं।

रणनीति मुलायम की:- रजत जयंती समारोह के दौरान शक्ति प्रदर्शन और मंच भले ही शिवपाल का रहा हो लेकिन परदे के पीछे सपा सुप्रीमो मुलायम की रणनीति काम कर रही थी। मुलायम ने रणनीतिक रूप से ही अपने खासमखास गायत्री प्रजापति को कार्यक्रम का संयोजक बनवाया था। गायत्री प्रजापति ने भीड़ बटोरने से लेकर कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार तक महती भूमिका निभाई। मुलायम के कहने पर ही एक बार फिर जनता परिवार इकट्ठा हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा, जदयू नेता शरद यादव, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और रालोद अध्यक्ष अजित सिंह अखिलेश यादव को सपा का उत्तराधिकारी भी घोषित कर गए।

ब्रांडिंग अखिलेश की:- रविवार सुबह से कार्यक्रम शुरू होने तक मंच पर शिवपाल छाए रहे लेकिन जैसे-जैसे मेहमान बोलते गए शिवपाल का असर कम होता गया और माहौल अखिलेशमय होता गया। रजत जयंती समारोह के लिए अखिलेश की पहली शर्त थी कि अमर सिंह कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। मीडिया में भले ही मुलायम और शिवपाल अमर का पक्ष लेते रहे। दोनों नेता पिछले दिनों यह बताते रहे कि अमर सिंह उनके दिल में रहते हैं लेकिन उनको मंच पर ही नहीं कार्यक्रम में भी जगह नहीं दे सके। पूरे कार्यक्रम के दौरान अखिलेश के समर्थन में ही नारे लगते रहे। यह नजारा अंदर ही नहीं बाहर भी था। बाहर उन लोगों ने अखिलेश का मोर्चा संभाल रखा था जिनकी इंट्री जनेश्वर मिश्र पार्क में बैन थी।

कुल मिलाकर मंच शिवपाल ने सजाया अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए था लेकिन मुलायम की रणनीति ने ऐसा काम किया की ब्रांडिंग हुई अखिलेश यादव की।

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