जांचे गये दूध के नमूनों में, प्रमुख ब्रांड वाली कंपनियों के नमूने भी हुये फेल
October 18, 2019
नयी दिल्ली, खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने एक अध्ययन में कहा कि जांच किये गये कुल दूध के नमूनों में से प्रमुख ब्रांड वाली दूध कंपनियों सहित विभिन्न इकाइयों के प्रसंस्कृत दूध के नमूने निर्धारित गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर पूरी तरह खरे नहीं पाये गये।
सुरक्षा मानदंड के स्तर पर भी प्रसंस्कृत दूध के 10.4 प्रतिशत नमूने खरे नहीं पाये गये जो सुरक्षा मानक पर जांच में अनुकूल नहीं पाये गये कच्चे दूध के 4.8 प्रतिशत नमूनों के मुकाबले कहीं अधिक है।
अध्ययन में कहा गया है कि कुल जांच किये गये नमूनों में से केवल 12 नमूनों में मिलावट पाई गयी और ऐसी ज्यादातर शिकायत तेलंगाना से प्राप्त हुई जिसके बाद मध्य प्रदेश और केरल का स्थान था।
एफएसएसएआई अध्ययन ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मई और अक्टूबर 2018 के बीच 1,103 शहरों और कस्बों से कुल 6,432 दूध के नमूने एकत्रित किए गये। संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों से दूध के नमूने एकत्र किए गए थे। कुल नमूनों का करीब 40.5 प्रतिशत नमूने प्रसंस्कृत दूध के थे जबकि बाकी नमूने कच्चे दूध के थे।
इन सब पर अंकुश लगाने के लिए नियामक ने संगठित डेयरी क्षेत्र को गुणवत्ता मानकों का कड़ाई से अनुपालन करने का निर्देश दिया है और एक जनवरी, 2020 तक संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में ‘परीक्षण और निरीक्षण’ की व्यवस्था करने को कहा है।
शुक्रवार को अपने अध्ययन को जारी करते हुए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकार (एफएसएसएआई) के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) पवन अग्रवाल ने यहां कहा, ‘‘आम लोगों का मानना है कि दूध में कहीं अधिक की मिलावट हो रही है। लेकिन हमारा अध्ययन दर्शाता है कि मिलावट से कहीं अधिक दूध की विषाक्तता की गंभीर समस्या है। बड़े ब्रांड की कंपनियों सहित प्रसंस्कृत दूध में विषाक्तता का होना अस्वीकार्य है।’’
मिलावट से ज्यादा दूध का दूषित होना एक गंभीर समस्या है क्योंकि प्रसंस्कृत दूध के नमूनों में एफ्लाटॉक्सिन-एम1, एंटीबायोटिक्स और कीटनाशकों जैसे पदार्थ अधिक पाए गए जो कहीं अधिक गंभीर समस्या है।
अध्ययन के निष्कर्षों को साझा करते हुए, सीईओ ने कहा कि जहां तक सुरक्षा मानदंडों का सवाल है, कुल प्रसंस्कृत दूध के नमूनों (2,607 नमूनों) में से करीब 10.4 प्रतिशत नमूने एफएसएसएआई के मानकों का पालन करने में विफल रहे क्योंकि इनमें एफ्लाटॉक्सिन-एम 1, एंटीबायोटिक्स और कीटनाशक जैसे दूषित तत्व मौजूद पाये गए।
अग्रवाल ने कहा, ‘‘कच्चे दूध की तुलना में प्रसंस्कृत दूध में एफ्लाटॉक्सिन-एम 1 की समस्या अधिक गंभीर है। तमिलनाडु, दिल्ली और केरल शीर्ष तीन राज्य थे जहां अफलाटॉक्सिन अवशेष अधिकतम पाया गया था।’’
दूध में एफ्लाटॉक्सिन-एम 1 की उपस्थिति, पशुचाारा और उसके खान पान के माध्यम से होती है जिसका मौजूदा समय में देश में विनियमन नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा, यह पहली बार है कि दूध में इस अवशेष की उपस्थिति का ऐसा विस्तृत सर्वेक्षण देश में किया गया है।
उन्होंने कहा कि देश में उक्त अवशेषों का परीक्षण करने के लिए कोई उपयुक्त प्रयोगशाला नहीं है। उन्होंने कहा कि परीक्षण मशीनों में निवेश के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, जो अफ्लाटॉक्सिन-एम 1 के अवशेषों का पता लगा सकते हैं।
गुणवत्ता के संदर्भ में, सर्वेक्षण में पाया गया है कि प्रसंस्कृत दूध के कुल नमूने के 37.7 प्रतिशत में गुणवत्ता मानकों का पालन नहीं किया जा रहा था। इनमें वसा, एसएनएफ, माल्टोडेक्सट्रिन और चीनी जैसे दूषित पदार्थों की उपस्थिति अनुमतियोग्य सीमा से अधिक थी।
कच्चे दूध के मामले में, मानदंडों का अनुपालन नहीं होने की शिकायत कहीं अधिक थी। कुल 3,825 नमूनों में से 47 प्रतिशत नमूनों को मानदंडों पर खरा नहीं पाया गया।
एफएसएसएआई के सीईओ ने कहा कि यह संगठित डेयरी क्षेत्र के लिए चेत जाने का समय है। उन्होंने कहा कि वसा और एसएनएफ (ठोस नहीं-वसा) की उपस्थिति एफएसएसएआई द्वारा निर्दिष्ट मानकों के अनुसार नहीं थी। हमें उम्मीद है कि संगठित क्षेत्र पहल करेगा और अगले 6-8 महीनों में मानकों का पालन सुनिश्चित करेगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, उन्होंने कहा, ‘‘वे हमसे असहमत हो सकते हैं और हमारे अध्ययन को चुनौती दे सकते हैं लेकिन उन्हें एफएसएसएआई मानक का पालन करना होगा।’’
उन्होंने कहा कि ‘परीक्षण और निरीक्षण’ की एक नई योजना शुरू की गई है, जिसे डेयरी इकाइयों को 1 जनवरी, 2020 तक अपनी संपूर्ण मूल्य श्रृंखला का अनुपालन करना है।
उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र के कच्चे दूध को गुणवत्ता मानदंडों के अनुरूप बनाने के लिए, राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे किसानों के बीच सही गुणवत्ता वाले पशु आहार और चारे का उपयोग करने के लिए जागरूकता पैदा करें।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वर्ष 2017-18 के दौरान देश में कुल अनुमानित दूध का उत्पादन 17 करोड़ 63.5 लाख टन का हुआ था। सरकार ने वर्ष 2022 तक 25 करोड़ 45.5 लाख टन दूध उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है।