रिपोर्ट में दो और तत्कालीन मंत्रियों भरत बारोट तथा अशोक भट्ट को भी क्लिन चिट दी गयी है। विरोधियों ने उन पर दंगे भड़काने और दंगाइयों की मदद करने के आरोप लगाये थे।गृह मंत्री प्रदीपसिंह जाडेजा ने यह रिपोर्ट सदन के पटल पर आज रखा।
इसे 18 नवंबर 2014 को ही तत्कालीन आनंदीबेन पटेल सरकार को सौंपा गया था पर सरकार ने इसे तब सार्वजनिक नहीं किया था। पूर्व आईपीएस अधिकारी श्रीकुमार ने गुजरात हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर इसे सार्वजनिक करने की मांग की थी जिसके बाद सरकार ने आज इसे सदन में पेश किया।
इससे पहले रिपोर्ट का पहला भाग 28 सितंबर 2009 को राज्य सरकार को सौंपा गया था। श्री मोदी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के तौर पर वर्ष 2002 में ही इस आयोग का गठन किया था।
श्री जाडेजा ने कहा कि इसमें उक्त तीन पूर्व आईपीएस अधिकारियों की नकारात्मक भूमिका का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट में इस बात को भ्री नकार दिया गया है कि श्री मोदी ने गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती ट्रेन के जलाये गये कोच एस 6 का दौरा साक्ष्य मिटाने की नीयत से किया था। इसमें यह भी कहा गया है कि पूर्व आईपीएस अधिकारी श्री भट्ट ने आरोप लगाने के लिए कुछ गलत दस्तावेज भी पेश किये थे।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उच्च पुलिस अधिकारियों की ऐसी कोई बैठक तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोदी ने नहीं की थी जिसमें उन्हें दंगे के दौरान निष्क्रिय रहने के निर्देश दिये गये हों। ज्ञातव्य है कि श्री भट्ट ने यह आरोप लगाया था कि श्री मोदी ने एक बैठक में ऐसे निर्देश दिये थे कि पुलिस दंगाई बहुसंख्यकों के प्रति नरमी बरते। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित विशेष जांच दल यानी एसआईटी ने इस मामले में श्री मोदी को पहले ही क्लिन चिट दे दी थी।