नयी दिल्ली, कृषि क्षेत्र के नये अविष्कारों और खेती तथा पशुपालन के नये तरीकों को आम लोगों विशेषकर किसानों तक पहुंचाने वाली खेती पत्रिका के प्रकाशन के 70 वर्ष पूरे हो गये हैं।
किसानों, पशुपालकों तथा अन्य संबद्ध कार्यकलापों से जुड़ी आबादी तक उनकी भाषा में कृषि अनुसंधान की उपलब्धियों में पहुंचाने के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने मई 1948 में श्खेती का पहला अंक प्रकाशित किया था। उस समय तक परिषद अंग्रेजी पत्रिका इंडियन फार्मिंग का प्रकाशन कर रही थी। सत्तर वर्ष पूरे होने के अवसर पर खेती के ताजा अंक में पत्रिका के मई 1948 में प्रकाशित प्रवेशांक को मौलिक रूप से समाहित किया गया है।
देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने प्रवेशांक को भेजे अपने संदेश में कहा था कि इस पत्रिका के द्वारा नये-नये अाविष्कार, खेती और पशुपालन संबंधी नूतन तरीके और सभी तरह की बातें कृषकों तक आसानी से पहुंचायी जा सकेंगी। आशा है कि इससे लाभ उठाकर कृषक पैदावार बढ़ा सकेंगे और अपना तथा देश का भला कर सकेंगे। हमारे देश में कृषि की पैदावर अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम हैए जिस तरह से भी हो सके इसे बढ़ाया जाना चाहिये।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिंदी में इस पत्रिका के प्रकाशन का स्वागत करते हुये कहा था कि वैज्ञानिक और किसान के बीचए नये अविष्कार तथा खेतों में उनके प्रयोग के बीच चिरकाल से भयंकर भेद चला आ रहा है। उन्होंने विश्वास जताया था कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद प्रांतीय तथा रियासती सरकारों की सहायता से देश के प्रत्येक ग्राम में अपने प्रयोगों के परिणाम पहुंचाने का प्रयास करेगी। इस समय जब हमें अपने साधनों से अधिक से अधिक भोजन प्राप्त करने की जरुरत हैए यह नितांत आवश्यक है कि जनता तक आवश्यक अनुसंधान पहुंच सके और लोग दैनिक जीवन में उनका प्रयोग कर सकें।
उस समय सरकार ने खेती पत्रिका के प्रकाशन को कितना महत्व दिया था इसका आभास इसके लिये गठित प्रकाशन समिति से पता चलता है। इस समिति में केंद्र सरकार के कृषि विकास कमिश्नर, कृषि कमिश्नरए पशुपालन कमिश्नर, वनस्पति सलाहकार, प्रमुख कृषि और पशु चिकित्सा अनसंधान संस्थानों के अध्यक्षाें को शामिल किया गया था।