नई दिल्ली,डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन लेने के लिए बार-बार इंजेक्शन लेना पड़ता है. इसके अतिरिक्त कैंसर व अन्य घातक बीमारियों की दवा भी इंजेक्शन से ही लेनी पड़ती है. ये दवाइयां इतने बड़े अणुओं से बनी होती हैं कि मरीज की आंत इसे पचा नहीं पाती है. इसी के चलते लंबे समय से वैज्ञानिक ऐसा तरीका विकसित करने की कोशिश में थे जिसकी मदद से मरीजों को बिना इंजेक्शन के ही इंसुलिन जैसी दवाएं दी जा सकें. इस क्षेत्र में उन्हें बड़ी सफलता हाथ लगी है.
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अब डायबिटीज से जूझ रहे व्यक्ति को इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि अब सिर्फ एक गोली खाकर डायबिटीज को कंट्रोल में रखा जा सकेगा. एक नई स्टडी में इस बात की जानकारी दी गई है. स्टडी की रिपोर्ट के मुताबिक, कैप्सूल में एक छोटी सुई मौजूद है, जिसे फ्रीज़ किए गए इंसुलिन से बनाया गया है, और एक स्प्रिंग भी है, जिन्हें शुगर की एक डिस्क द्वारा रखा गया है. कैप्सूल को खाने के बाद जैसे ही ये पेट में पहुंचता है, तो पेट में मौजूद पानी डिस्क को डिजॉल्व कर देता है, जिससे स्प्रिंग निकल जाता है. इसके बाद इंसुलिन डाइजेस्टिव सिस्ट में ब्रेक हो जाता है. ब्रिघम और वूमेन हॉस्पिटल और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की टीम ने बताया, कैप्सूल लेना इंसुलिन के इंजेक्शन लेने से ज्यादा आसान है. इसकी खास बात ये है कि यह दूसरे इंजेक्शन के मुकाबले ज्यादा सस्ता है और साथ ही इसको कहीं भी लेकर जा सकते हैं.
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सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, अमेरिका की लगभग 9.4 फीसदी आबादी डायबिटीज बीमारी से जूझ रही है. स्टडी के मुताबिक, पैंक्रियाज में जब बहुत कम मात्रा में बीटा सेल्स मौजूद होते हैं, जिस कारण वो या तो इंसुलिन बना नहीं पाते हैं या बहुत ही कम मात्रा में बनाते हैं, तो डायबिटीज की समस्या हो जाती है. डायबिटीज का अगर समय रहते इलाज ना किया जाए तो इससे किडनी, आंखें और दिल भी डैमेज हो सकता है. आमतौर पर इस बीमारी से पीड़ित लोगों को इंसुलिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं.
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शोधकर्ताओं ने बताया कि कैप्सूल बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर और कुछ स्टेनलेस स्टील की मदद से बनाया गया है. उन्होंने कहा कि जब डायबिटीज का कोई मरीज ये कैप्सूल खाएगा तो शुगर डिस्क पेट में घुल जाएगी और स्प्रिंग को छोड़ देगी. स्प्रिंग के निकलने के बाद इसमें से एक प्रकार की काइनेटिक एनर्जी निकलेगी. स्टडी के लेखक Dr. Traverso ने कहा, ‘लिक्विड के बजाए हम सॉलिड रसायन इस्तेमाल करना चाहते थे. क्योंकि कैप्सूल के अंदर सॉलिड रसायन लिक्विड से ज्यादा बेहतर तरीके से फिट हो जाता है.’
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बता दें, शोधकर्ताओं की टीम ने सबसे पहला टेस्ट पिग जानवर पर किया. उनके मुताबिक, एक कैप्सूल से पिग को लगभग 300 माइक्रोग्राम इंसुलिन मिला. लेकिन हालिया टेस्ट में इंसुलिन की मात्रा को 300 माइक्रोग्राम से बढ़ाकर 5 मिलीग्राम किया गया है. बता दें, टाइप-2 डायबिटीज के मरीज को इतने इंसुलिन की जरूरत पड़ती है. शोधकर्ताओं ने बताया कि पेट में घुलने के बाद ये कैप्सूल बिना किसी साइड इफेक्ट के डाइजेस्टिव सिस्टम द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है. बता दें, शोधकर्ता इस कैप्सूल को फार्मेसी कंपनी नोवो नॉर्डिस्क (Novo Nordisk) के साथ मिलकर इस कैप्सूल को बनाने का काम कर रहे हैं. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि आने वाले 3 वर्षों के अंदर वो इस कैप्सूल का इंसानों पर ट्रायल कर सकेंगे.
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