लघु अखबारों को लेकर पत्रकार बाबा नवेदानंद (नवेद शिकोह) का खुला पत्र
April 28, 2018
सेवा मे,
अध्यक्ष व सचिव
मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति, उत्तर प्रदेश
नमस्कार,
अखबारी कागज पर जीएसटी की मार से कम संसाधन वाले संघर्षशील लघु एवं मध्यम अखबारों को बचाने की सख्त जरूरत है और इस दिशा में आप लोग निरंतर प्रयास कर भी रहे हैं। इसलिए नहीं कि इन अखबारों के मालिकों/प्रकाशकों से हमारी और आपकी कोई ख़ास दिलचस्पी है, बल्कि इसलिए कि कुल पत्रकारों और कुल अखबार कर्मियों में 90% पत्रकारों/अखबार कर्मियों का रोजगार इन अखबारों पर ही निर्भर है।
इस संदर्भ में ही मैं आप लोगों को कुछ तथ्य और सुझाव प्रस्तुत कर रहा हूं। तो क्या कम प्रसार वाले अखबारों में राज्य स्तरीय खबरें नहीं छपतीं ! उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग की प्रेस मान्यता नियमावली का एक बिन्दु बड़ा अजीब है। जमाने से चली आ रही इस नियमावली पर आज तक किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई । ना जाने कितनी सरकारें आयीं और गयीं.. ना जाने कितने पत्रकार संगठन बने, ना जाने कितने लोगों ने पत्रकारों के संगठनों का नेतृत्व संभाला। लेकिन इस बात पर सवाल किसी ने नहीं उठाये कि राज्य मुख्यालय की प्रेस मान्यता के लिए अखबार का प्रसार 25 हजार से अधिक होने की बाध्यता क्यों है?
क्या 25 हजार से कम प्रसार वाले अखबारों के लिए राज्य मुख्यालय की खबरें संकलित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। शायद यही कारण हो कि जिन अखबारों का 25 हजार से बहुत कम प्रसार होता है उन अखबारों को मजबूरी में 25 हजार से अधिक का प्रसार दिखाने का झूठा दावा करने पर मजबूर होना पड़ता है। ये बात सही है कि लखनऊ जैसे शहर में 7-8 अखबारों के सिवा कोई भी अखबार वास्तविक रूप से 25 हजार से अधिक प्रतियां नहीं छाप पाता। लेकिन सैकड़ों अखबारों को अपने संवाददाता की प्रेस मान्यता की जरुरत पड़ती ही है।ताकि राज्य मुख्यालय की खबरों के संकलन के लिए संवाददाता के लिए सचिवालय /विधानसभा इत्यादि के रास्ते खुले रहें।
90% नान ब्रांड अखबार लघु और मध्यम श्रेणी में आते हैं। इन संघर्षशील/संघर्षरत अखबारों के मल्टी एडीशन नहीं होते। ये रंग बिरंगी छपाई और 16 से 48 पन्नों के कागज का खर्च नहीं उठा सकते। बड़े पूंजीपति इन अखबारों के मालिक नहीं हैं। अखबार बिक्री की खर्चीली स्कीम और खूब सारे रंगीन पन्नों के साथ ये अपना विशाल पाठक वर्ग नहीं बना सकते। इसलिए इनको कार्पोरेट वर्ग के या अन्य प्राइवेट विज्ञापन नहीं मिलते। थोड़े-बहुत सरकारी विज्ञापनों के सहयोग से ये 90% अखबार अपना बेसिक खर्च निकाल कर अखबारों को जिन्दा रखते हैं।
ये अखबार जिन्दा रहेंगे तभी 90%पत्रकारों /अखबार कर्मियों का रोजगार बचा रहेगा। न्यूनतम प्रसार पर यदि इन अखबारों को सरकारी विज्ञापनों की आशाजनक दरें (अखबार के पृष्ठों यानी खर्च के हिसाब से 9 से 14 रूपये तक) मिल जायें, और कम प्रसार पर इनके संवाददाताओं को राज्य मुख्यालय की प्रेस मान्यता मिल जाये(पृष्ठों के हिसाब से मान्यता की संख्या) तो ये अपना वास्तविक प्रसार ही प्रस्तुत कर दें।
यदि अखबारी कागज पर जीएसटी खत्म नहीं होता है तो 90%अखबारों को चार हजार के अंदर अपना प्रसार ही प्रस्तुत करना होगा। अब जरूरत इस बात की है कि 90%पत्रकारों की नौकरी और राज्य मुख्यालय की मान्यता बचाने के लिए पत्रकारों की शुभचिंतक प्रदेश सरकार से मांग की जाये कि कम संसाधनों वाले छोटे अखबारों को चार हजार के अंदर के प्रसार पर सरकारी विज्ञापनों के लिए इतनी आशाजनक न्यूनतम दरें दे दी जायें कि इन अखबारों का मामूली-सा खर्च निकल आये। ताकि प्रकाशक अखबार बंद ना करें, और अखबार कर्मी और पत्रकार बेरोजगार नहीं हों।
प्रदेश सरकार कम प्रसार वाले डीएवीपी/सूचीबद्ध अखबारों को नियमित छपने और समय से जमा करना अनिवार्य कर दे। ताकि फर्जी अखबार सरकारी विज्ञापनों और प्रेस मान्यता के दावेदार ना हों। इस दिशा में पत्रकारों को एकजुट होकर इंसाफपसंद मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी जी/मुख्य सचिव /प्रमुख सचिव सूचना से वार्ता करनी होगी। इस नेक काम की शुरुआत आप लोगों को ( राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के नवनिर्वाचित अध्यक्ष आदरणीय हेमंत तिवारी जी और सचिव आदरणीय शिवशरन जी) अतिशीघ्र करनी होगी। ताकि ये मांग पूरी हो जाने के साथ ही 90%अखबार 31 मई 2018 ( जिसका लगभग एक महीना ही शेष है) तक अपने अखबारों का कम प्रसार(चार हजार के अंदर) ही एनुअल रिटर्न में प्रस्तुत करें।