लखनऊ, बसपा प्रमुख मायावती जी इनदिनों पार्टी का खोया हुआ जनाधार वापस लाने के लिए प्रयासरत हैं, इसके तहत उन्होंने पार्टी छोड़कर गए पुराने नेताओं की वापसी के साथ ही मुस्लिम समाज को जोड़ने की कवायद तेज कर दी है, लेकिन जिस तरह से पार्टी नेतृत्व अपने मूल एजेंडे से हटकर ऐसे लोगों के परिवार के लोगों को पार्टी से जोड़ रहा है, जिसका कभी पार्टी ने खुलकर विरोध किया था। वर्ष 2007 में बसपा ने अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ चढ़ गुंडों की छाती पर. बटन दबाओ हाथी पर का नारा दिया था और पार्टी ने अपने इसी नारे की बदौलत दलितों, पिछड़ा वर्ग व मुस्लिमों के साथ ही सवर्णों का वोट हासिल करके पूर्ण बहुमत की सरकार बनायीं थी, लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद से पार्टी का यूपी में लगातार जनाधार गिर रहा है। पिछले साल यूपी में हुए विधानसभा के चुनाव में बसपा का अबतक का सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा है, वोट प्रतिशत भी गिरकर लगभग 13 प्रतिशत रह गया है। ऐसे में पार्टी के जनाधार को बचाने के साथ ही बसपा से दूर हुए वोट बैंक को पार्टी में वापस लाने की भी चुनौती है।
दरअसल बसपा की पहचान और साफ़ सुथरी छवि अपने शासनकाल के दौरान अपराधियों के खिलाफ की गयी सख्त कार्रवाई के चलते बनी और मायावती जी ने मुख्यमंत्री रहते अपनी पार्टी के आपराधिक मामलों में शामिल सांसदों और विधायकों को भी जेल का रास्ता दिखाया, इतना ही नहीं उन्होंने मुख्यमंत्री रहते विधानसभा में माफिया अतीक अहमद को कहा था कि वे अपराधियों की आंखो से आंसू निकलवा देतीं हैं, लेकिन पार्टी का खोया हुआ जनाधार वापस लाने के लिए उन्होंने विभिन्न मामलों में जेल में बंद अतीक अहमद की पत्नी को पार्टी में शामिल कर लिया, इसको लेकर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी अचरज है, बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में बसपा प्रमुख ने अतीक अहमद के साम्राज्य को चुनौती देकर वहां से राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव मैदान में उतारा और बाहुबली के खिलाफ जितवाया भी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उसी माफिया की पत्नी को पार्टी में शामिल कर लिया। बसपा नेतृत्व शुरू से ही दलितों, पिछड़ा वर्ग के साथ ही मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने के लिए अभियान चलाती आ रही है, इनदिनों पार्टी के घटते जनाधार से चिंतित नेतृत्व ने अपना पूरा फोकस दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने पर कर दिया है, हाल ही में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में भी पार्टी प्रत्याशियों को लगभग सभी सीटों पर 35 हजार से कम वोट नहीं मिले, पार्टी चाहती है कि यदि मुस्लिम वोट उन्हें मिल जाए तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे वह एकबार फिर राज्य की सत्ता पा सकती है, लेकिन पार्टी नेतृत्व को इस बात पर भी विचार करना होगा कि क्या केवल माफियाओं-दबंगों या इनके परिवार के लोगों को ही पार्टी में शामिल करके मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ा जा सकता है, क्या मुस्लिम समाज के बुद्धजीवियों, प्रोफेसरों या जिनकी समाज में अच्छी छवि है, ऐसे लोगों को पार्टी से जोड़कर पार्टी के जनाधार को नहीं बढाया जा सकता। पार्टी नेतृत्व को अपने पुराने एजेंडे पर चलकर अनुसूचित जाति की अन्य जातियों के साथ-साथ पिछड़ा वर्ग की सभी जातियों को जो शुरुआती दौर से बसपा से जुड़ी थीं उन्हें फिर से पार्टी से जोड़ने की मुहिम चलाना होगा तभी पार्टी की ताकत बढ़ेगी और इसका फायदा पार्टी के साथ ही शोषित वंचित समाज को भी मिल सकेगा जिसके लिए कांशीराम जी ने बसपा का गठन किया था|
बहुजन नायक कांशीराम जी ने वर्ण व्यवस्था के आधार पर सताए गए शोषितों और वंचितों को शासन और प्रशासन में हिस्सेदारी दिलाने के लिए बहुजन समाज पार्टी का गठन किया और जाति के आधार पर सदियों से सताये गए दलित और पिछड़ा वर्ग के साथ ही मुस्लिमों को एकजुट करके देश के सबसे बड़े राज्य में बहुजनों की सरकार बनायीं और मायावती जी ने मुख्यमंत्री रहते इस समाज को न्याय दिलाने के साथ किसी भी समाज के खिलाफ कोई अन्याय ना कर सके ये भी सुनिश्चित किया। उनके शासनकाल में अपराधियों और माफियाओं पर प्रभावी अंकुश लगा, लेकिन जिस तरह से वोट की खातिर माफिया या उसके परिवार को अपनी पार्टी में शामिल करने का चलन स्वास्थ्य समाज के लिए चिंताजनक है। इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि क्या वास्तव में अतीक की पत्नी के बसपा में आने से मुस्लिम वोट बसपा में आ जायेगा? बसपा के ‘चढ़ गुण्डों की छाती पर…….. नारे का क्या होगा? मायावती जी इस समय दिशाहीन एवं सिद्धान्तहीन राजनीति कर रही हैं जो बसपा की मूल विचारधारा के विपरीत है जबकि बसपा की मूल विचारधारा बहुजनों को एकजुट कर सत्ता हासिल कर उन्हें संविधान प्रदत्त अधिकारों को दिलाने का लक्ष्य है।
-कमल जयंत, वरिष्ठ पत्रकार
ReplyForward |