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भीमा कोरेगांव एक ऐतिहासिक युद्ध  की यादगार, धारा 144 लागू

भीमा कोरेगांव एक ऐतिहासिक युद्ध  की यादगार है, जब महज 500 महार सैनिकों ने पेशवाओं के 28 हजार सैनिकों को धूल चटाई थी। इस बार, पुणे प्रशासन ने भीमा कोरेगांव में धारा 144 लगा दी है। ये पाबंदी एहतियात के तौर पर लगाई है

भीमा कोरेगांव की लड़ाई पेशवाओं और महारों के बीच हुई थी और यह लड़ाई पेशवाओं के जातिवादी घमंड के खिलाफ महारों के आत्म सम्मान की लड़ाई थी। इसलिए दलित समाज के लिए इस लड़ाई का अलग महत्व है। पेशवा मूल रूप से छत्रपति (मराठा साम्राज्य के राजा) के अधीनस्थ के रूप में सेवा करते थे।1707 में औरंगजेब की मृत्यु पश्चात में बहादुर शाह-1 ने छत्रपति संभाजी के पुत्र शाहूजी को रिहाई की कुछ शर्तों पर अपनी कैद से रिहा किया तो उसके तुरंत बाद शाहूजी ने मराठा सिंहासन का दावा किया और अपनी चाची ताराबाई और उसके बेटे को चुनौती दी थी।  1713 को शाहूजी ने जो की मराठा साम्राज्य के छत्रपति बन चुके थे, उन्होंने बालाजी विश्वनाथ जो की (चितपावन ब्राह्मण )थे, उनको पांचवा पेशवा (प्रधानमंत्री) घोषित किया, बाद मे पेशवाओं का दौर शुरू हुआ और वे मराठा सम्राज्य के प्रमुख शक्ति केंद्र बन गए और छत्रपति एक शक्तिविहीन औपचारिकता मात्र का शासक रह गए।

अब मराठा साम्राज्य की पूरी कमान पेशवाओं के हाथो में आ गई और पेशवाओं यानि चितपावन ब्राह्मणों ने  महारों  पर मनुस्मृति की व्यवस्था लागू कर दी, जिसके तहत उन्हें कमर पर झाड़ू और गले में मटका बांधने को कहा गया। ताकि जब कोई महार रास्ते से चले तो उनके पैरों के निशान झाड़ू द्वारा मिटते रहे और वे थूंकना भी चाहे तो उन्हें अपने गले की मटकी में ही थूकना पड़े।

यह वही दौर था जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत पर अपना विस्तार करने में लगी हुई थी और उसके लिए उनको पेशवाओं को हराना बेहद जरुरी था और ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी रणनीति बना ली थी।  महारों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ने के लिए पेशवाओं की सेना में भर्ती होने का आग्रह किया, जिसे पेशवाओं द्वारा अपमानित ढंग से ठुकरा दिया गया। लेकिन यह बात जब अंग्रेजो को पता चली तो उन्होंने महार जाति के लोगों को समानता की शर्तों पर अपने साथ ले लिया और उन्हें अंग्रेजी सेना में भर्ती कर लिया।

जब 1 जनवरी 1818 ईस्ट इंडिया कम्पनी और पेशवाओं में युद्ध हुआ तब पेशवाओं की सेना में 20 हजार घुड़सवार और 8 हजार पैदल ऐसे कुल 28 हजार सैनिक थे, जिनकी अगुवाई पेशवा बाजीराव-2 कर रहे थे और ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से बॉम्बे लाइन इन्फेंट्री में कुल 500 महार सैनिक थे, जिनमे आधे घुड़सवार और आधे पैदल सैनिक थे।

महार रेजिमेंट के शौर्य बल के आगे पेशवा नहीं टिक सके और इस युद्ध में पेशवाओं की करारी हार हुई। पेशवाओं का साम्राज्य खत्म हुआ। महार रेजिमेंट की अभूतपूर्व अविस्मरणीय वीरता की यादगार में भीमा नदी के किनारे विजय स्तंभ का निर्माण करवाया गया। जिस पर उन शूरवीरों के नाम लिखे गए।

बाबा साहेब आंबेडकर भीमा कोरेगांवजाते थे और कहते थे कि दलित समाज के लोगों को अपने शौर्य को याद करने के लिए भीमा कोरेगांव जाना चाहिए। इसलिए हर साल दलित समाज के लाखों लोग अपने उस शौर्य को याद करने के लिए भीमा कोरेगांव जाकर विजय स्तम्भ को नमन करते है। म्हारों की इस विजय की याद में ही यहां ‘विजय स्तंभ’ की स्थापना की गई है, जहां हर साल एक जनवरी को दलित समुदाय के लोग, युद्ध में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने और अपने पूर्वजों के शौर्य को याद करने के लिए जुटते हैं।इस स्तम्भ पर 1818 के युद्ध में मारे गए महार योद्धाओं के नाम अंकित हैं।

इस बार, पुणे प्रशासन ने भीमा कोरेगांव में धारा 144 लगा दी है। ये पाबंदी एहतियात के तौर पर लगाई है, क्योंकि 4 साल पहले 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में जमकर बवाल हुआ था।

1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर विजय स्तंभ के पास हिंसा भड़क गई थी। पुलिस के अनुसार, एक दिन पहले एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम में भड़काऊ भाषणबाजी हुई थी, जिससे ये हिंसा भड़की थी। इस मामले में एल्गार परिषद से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

इस बार भी ऐसा बवाल न हो, उसके लिए धारा 144 लागू कर दी गई है। इसके बाद यहां पोस्टर, बैनर या होर्डिंग लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. यहां पर 30 दिसंबर की रात 12 बजे से 2 जनवरी की सुबह 6 बजे तक धारा 144 लागू रहेगी।