उन्होंने विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों पर जातिवादी होने और जाति के आधार पर छात्रों को अंक देने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं. डॉ. विक्रम हरिजन ने कहा है कि विश्वविद्यालय में छात्र और शिक्षक जाति के आधार पर बंटे हुए हैं और रिसर्च कर रहे छात्रों को बंधुआ मजदूर की तरह से रखा जाता है. रिसर्च कराने वाले छात्र अपने रिसर्च गाइड के अलावा किसी दूसरे शिक्षक से भी नहीं मिल पाते हैं.
डॉ. विक्रम हरिजन ने आरोप लगाया कि यूनिवर्सिटी के हर विभाग के अंदर सीनियर और जूनियर शिक्षकों में आपस में खींचतान और लड़ाई चलती रहती है, जिससे रिसर्च का स्तर और गरिमा भी गिर रही है. डॉ. विक्रम हरिजन ने कुलपति से ऐसे तमाम मामलों को सुलझाने और इसके समाधान की भी मांग की है. उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से भी मांग की है कि उत्तर भारत और खासतौर पर पूर्वांचल के विश्वविद्यालयों में जातिवाद की समस्या सबसे ज्यादा है. इसलिए इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाया जाना चाहिए.
डॉ. विक्रम हरिजन की ओर से लगाए गए आरोपों को इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के चीफ प्राॅक्टर और विवि शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. रामसेवक दुबे ने सिरे से खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा है कि विश्वविद्यालय में जातिवाद जैसी कोई समस्या नहीं है. हांलाकि, उन्होंने कहा है कि जिस कैटेगरी में जो व्यक्ति जिस पद के लिए आवेदन करता है, उस कैटेगरी में उस शिक्षक की नियुक्ति होती है. लेकिन, जाति के आधार पर न ही शिक्षकों और न ही छात्रों से कोई भेदभाव की विश्व विद्यालय में कोई परंपरा रही है और न ही ऐसी कोई शिकायत ही अब तक सामने आई है.