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कैदियों की मजदूरी से कटौती पर, हाईकोर्ट ने दिये ये निर्देश

नयी दिल्ली, दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि पीड़ित कल्याण कोष के लिए कैदियों की मजदूरी से कटौती करने में कुछ भी गलत नहीं है, बशर्ते इसकी कानून के तहत अनुमति हो लेकिन ऐसा शासकीय आदेश के तहत नहीं किया जा सकता।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की एक पीठ ने कहा कि ऐसी कटौतियां किसी शासकीय आदेश के जरिये नहीं की जा सकती, दिल्ली में ऐसा दिल्ली जेल नियमावली 2018 के तहत किया जा रहा है, जिसकी अनुमति है।

पीठ ने दिल्ली सरकार से पूछा कि यहां जेल प्राधिकारियों ने कटौतियां करना क्यों रोक दिया। दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व उसके स्थायी अधिवक्ता (फौजदारी) राहुल मेहरा कर रहे थे।

मेहरा ने अदालत से कहा कि यह गत वर्ष दिसम्बर में रोक दिया गया था जब उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि इस पर रोक लगा दी जाए।
उन्होंने पीठ से यह भी कहा कि दिल्ली जेल नियमावली 2018, नियम 96 (8) के तहत ऐसी कटौती का प्रावधान है।

याचिकाकर्ता कात्यायनी के लिए पेश हुए अधिवक्ता अजय वर्मा ने कटौती का विरोध किया कि देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इसे समाप्त कर दिया है। उन्होंने पीठ से यह भी कहा कि 2006 से इस तरीके से एकत्रित 15 करोड़ रुपये में से 14 करोड़ रुपये बिना उपयोग के पड़े हुए हैं।

उन्होंने कहा कि जो राशि बिना इस्तेमाल पड़ी हुई है उसका इस्तेमाल उन बच्चों के कल्याण के लिए हो सकता है जिनके अभिभावक बंदी हैं, जैसा सुझाव दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) ने दिया है क्योंकि दिल्ली सरकार विभिन्न अपराधों के पीड़ितों के मुआवजे के लिए पहले ही एक पीड़ित मुआवजा निधि स्थापित कर चुकी है।

पीठ ने कहा कि वह मामले पर 26 नवम्बर को दलीलें सुनना जारी रखेगी। पेशे से वकील कात्यायनी ने अपनी अर्जी में दिल्ली जेल नियमावली 1988 में किया गया संशोधन रद्द करने की मांग की थी जिसमें नियम 39ए जोड़ा गया था जो कटौती की बात करता है।