नई दिल्ली, स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर देश में मनाए जा रहे’आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के तहत संगीत नाटक अकादेमी ने रंग स्वाधीनता कार्यक्रम का आयोजन किया। स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले आजादी के योद्धाओं की याद में 27 से 29 अगस्तक इस उत्सव का आयोजन किया गया। हर दिन शाम को 6 बजे रविंद्र भवन स्थित मेघदूत थिएटर-तीन में लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दी। इस कार्यक्रम में लोक परंपराओं के माध्यम से देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित किया गया। इस वर्ष का रंग स्वाधीनता उत्सव लोक गायन शैलियों पर केंद्रित था। इस उत्सव में भारत के नौ राज्यों के कुल बारह दल और लगभग सौ कलाकार ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्जवलन से हुई। समापन में अकादेमी के सचिव अनीस पी राजन ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया।
लोक कलाओं को बचाने की पहल है रंग स्वाधीनता
अकादेमी पिछले छह वर्षों से रंग स्वाधीनता उत्सव मना रही है। इस उत्सव का उद्देश्य विभिन्न रचना शैलियों के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता का जश्न मनाना है। विविध सांस्कृतिक कथा गायन शैलियों और लोक गायन शैलियों को मंच देकर लोगों तक पहुंचना है। भाग लेने वाले कलाकार स्वतंत्रता आंदोलन के महान नायकों और उनके संघर्षों के बारे में गाथागीत प्रस्तुत करते हैं।
आल्हा गायन में सुनाई गई चंद्रशेखर आजाद की कहानी
हर दिन कलाकारों के दल ने 4 प्रस्तुतियां दीं। हरियाणा, राेहतक के सुभाष नगाड़ा एंड ग्रुप द्वारा नगाड़ा, चिमटा, बीन, सारंगी, ढोल, तुम्बा, बैंजो, शहनाई और हारमोनियम जैसे वाद्ययंत्रों पर भक्ति गीतों की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम शुरू किया। इसके बाद रामरथ पाण्डेय एवं उनके साथी कलाकार उत्तर प्रदेश के आल्हा गायन शैली में चंद्रशेखर आजाद की वीरता का गुणगान करते हुए गाथागीत गाया। फिर श्री चुन्नीलाल रैकवार की प्रस्तुति और मध्य प्रदेश के लोक नृत्य ढिमरयाई के साथ गीतों के समूह की प्रस्तुति दी। अंत में गफरुद्दीन मेवाती और उनके साथी कलाकार राजस्थान के पांडुवन का कड़ा पर अपनी महारत का प्रदर्शन कर लोगों का दिल जीत लिया।बिरसा मुंडा को किया गया याद
28 अगस्त को चेतन देवांगन और उनके साथी कलाकारों ने छत्तीसगढ़ की पंडवानी शैली में बिरसा मुंडा पर गीत प्रस्तुत किये। इसके बाद गजरला कोमुरय्या एंड ग्रुप तेलंगाना की ओग्गू कथा गायन शैली में वीरता से भरे गीत ने लोगों में उत्साह भर दिया। देश राज शशली और उनके साथी कलाकार उधम सिंह की शहादत को पंजाब की ढाड़ी गायन शैली में सुनाया। रानी लक्ष्मीबाई की कहानी प्रज्ञा शर्मा और हिमांशु बाजपेयी की सुरीली आवाजों में जीवंत हो उठी।
लोगों ने सुनी छत्रपति शिवाजी के गौरव की गाथा अंतिम दिन चंदन तिवारी और उनके साथी कलाकारों ने बिहार के लोकगीत गाये, जिसमें स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों का वर्णन था। धर्मेंद्र सिंह एंड ग्रुप हरियाणा की रागिनी गायन शैली में सुभाष चंद्र बोस के बारे में गीत प्रस्तुत किया। छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में पोवाड़ा गीत देवानंद माली और उनके साथी कलाकारों द्वारा प्रस्तुत दी गई। शिवाजी के गीत सुन तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा। कार्यक्रम का समापन शैलेश श्रीवास्तव और उनके साथी कलाकारों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को सलाम करते हुए उत्तर प्रदेश के लोक गीत प्रस्तुत कर हुआ।