ISRO का बड़ा बयान, आप भी जा सकते हैं अंतरिक्ष में….
January 11, 2019
नई दिल्ली,भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान जल्द ही गगनयान को अंतरिक्ष में भेजेगा और इसके लिए तैयारियां काफी तेजी से चल रही हैं। इसरो प्रमुख के सिवान ने बेंगलुरू में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि इसरो के पास 17 मिशन थे जिनमें 7 लॉन्च व्हिकल मिशन, 9 अंतरिक्ष यान मिशन शामिल थे। इसरो ने इनमें से 17 मिशन पर सफलता पाई जबकि एक लक्ष्य से चूक गया।
सिवन ने कहा कि इसरो की सबसे बड़ी प्राथमिकता गगनयान है, पहली डेडलाइन अनमैंड मिशन के लिए दिसंबर 2020 तय की गई है। दूसरी डेडलाइन अनमैंड मिशन के लिए जुलाई 2021 तय की गई है। पहले मानवीय मिशन के लिए दिसंबर 2021 का समय तय किया गया है। जीसैट-20, जीसैट-29 सैटेलाइट इस साल होंगे लॉन्च, सितंबर, अक्टूबर तक आने वाले इस सैटलाइट से हाई स्पीड कनेक्टिविटि को बल मिलेगा। डिजिटल इंडिया के सपने को पूरा करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने बताया कि छह रिसर्च सेंटर स्थापित किए जाएंगे, ताकि भारतीय विद्यार्थियों को अभी नासा जाना पड़ता है, इस प्रोग्राम के बाद वे यहां वो सभी चीजें समझ पाएंगे। गगनयान के लिए शुरुआती ट्रेनिंग भारत में ही होगी लेकिन अडवांस ट्रेनिंग के अंतरिक्ष यात्रियों को रूस जाना पड़ सकता है। गगनयान में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के चयन पर इसरो प्रमुख ने कहा कि सभी क्रू मेंबर्स भारत से होंगे, भारतीय एयरफोर्स के जवान होंगे, सिविलियन भी हो सकते हैं, जो भी चयन के पैमाने पर खरा उतरेंगे वही जाएंगे, महिलाओं को भी अवसर है। चयन संबंधित फैसले सिलेक्शन कमिटी करेगी। देशभर में छह इंक्यूबेशन सेंटर बनाए जाएंगे, जो सभी प्रॉजेक्ट्स के लिए ट्रेनिंग मुहैया कराएंगे।
इसरो का यह स्पेस अभियान तीन भारतीयों को 2022 में अंतरिक्ष में ले जाने का है। वैसे इसरो ने बीते कई दशकों में अपने रॉकेटों और उपग्रहों के अलावा मंगलयान और चंद्र मिशन से जो प्रतिष्ठा हासिल की है, उस सिलसिले में देखें तो गगनयान की जरूरत की आरंभिक वजह समझ में आ जाती है। 2022 में देश के प्रतिभावान नौजवान जब स्वदेशी अभियान की बदौलत अंतरिक्ष के भ्रमण पर होंगे तो यह उपलब्धि सिर्फ उन नौजवानों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होगी, बल्कि इससे भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जो अपने नागरिकों को स्वदेशी तकनीक के बल पर अंतरिक्ष में भेज सकता है। हालांकि यह स्वाभाविक ही है कि गननयान पर 10 हजार करोड़ रुपये के खर्च को देखते यह पूछा जाए कि क्या इसके बिना अंतरिक्ष में हमारी हैसियत को कोई बट्टा लगने वाला है या फिर स्पेस मार्केट का कोई दबाव है, जिसके लिए हमें यह साबित करने की जरूरत है कि भारत अपने दम पर इंसानों को स्पेस में भेज सकता है?