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यूपी में लोकसभा चुनाव का पहला चरण ,देगा देश की राजनीति का संकेत

लखनऊ ,  देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में भारतीय जनता पार्टी को अपना किला बचाये रखने के लिए कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन की चुनौती को पार पाना होगा। सात चरणों में होने वाली चुनाव प्रक्रिया में उत्तर प्रदेेश की भागीदारी शुरू से अंत तक है। पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, गौतमबुद्धनगर, बागपत, सहारनपुर, मेरठ, कैराना और बिजनौर में 11 अप्रैल को वोट डाले जायेंगे।

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अंजाम की बेहतरी के लिये अच्छे आगाज की चाहत में जुटी भाजपा ,कांग्रेस और गठबंधन के बीच चुनावी महासमर में जोरदार संघर्ष की उम्मीद है हालांकि पिछले चुनावों की तरह इस बार भी विकास की बजाय जातीय समीकरणों के यहां हावी रहने के आसार हैं। वर्ष 2014 में ‘मोदी लहर’ पर सवार भाजपा ने इन सभी आठ सीटों पर जीत का परचम लहराया था लेकिन 2017 में कैराना में हुये उपचुनाव में उसे कैराना उसके हाथ से निकल गयी थी।

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भाजपा को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिये राज्य में दो धुरंधर विरोधी समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मंच साझा किया है जिनकी मुहिम को सफल बनाने के लिये पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासा प्रभाव रखने वाली राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने हाथ मिलाया है। राज्य की राजनीति में हाशिये पर खड़ी कांग्रेस पहले चरण में कुछ कर गुजरने के लिये कमर कस चुकी है।

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विशेषता है कि यहां के लोग मतदान में खासी रूचि दिखलाते हैे जो स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक है जबकि काम में ढिलायी बरतने वाले दलों और जन प्रतिनिधियों को दरकिनार करने में यहां के बाशिंदे तनिक भी देर नहीं करते। पहले चरण की आठों सीटों के अंतर्गत 40 विधानसभा सीटों में से 33 पर भाजपा का कब्जा है जबकि तीन पर सपा, दो पर कांग्रेस और बसपा एवं रालोद के खाते में एक-एक सीट है।वर्ष 2014 के चुनाव में सहारनपुर को छोड़ कर भाजपा ने शेष सात सीटों पर एकतरफा जीत हासिल की थी। राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सहारनपुर में भाजपा 65 हजार वोटों के अंतर से पर जीत हासिल की थी।

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मौजूदा सांसद राघव लखनपाल इस बार भी भाजपा प्रत्याशी है जबकि कांग्रेस ने पिछली बार दूसरे स्थान पर रहे इमरान मसूद को फिर से मैदान में उतारा है वहीं गठबंधन की तरफ से बसपा प्रत्याशी फजलुर्ररहमान कुरैशी मैदान में हैं। कैराना में उपचुनाव में करारी शिकस्त झेलने वाली पूर्व सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह पर भाजपा ने भरोसा नहीं जताते हुए प्रदीप चौधरी को टिकट थमाया है जबकि उपचुनाव में भाजपा को घुटनो पर लाने वाली रालोद की तबस्सुम हसन गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखने की भरपूर कोशिश करेंगी। कांग्रेस ने जाट नेता हरेंद्र मलिक को अपना प्रत्याशी बनाया है।

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बिजनौर सीट पर भी रोमांचक मुकाबला होने जा रहा है। भाजपा ने एक बार फिर अपने सांसद भारतेंद्र पर भरोसा जताया है जबकी दूसरी ओर से बसपा ने पुराने उम्मीदवार मलूक नागर को टिकट दिया है। कांग्रेस ने यहां से नसीमुद्दीन सिद्दीकी को टिकट देकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। सिद्दीकी पहले बसपा में थे लेकिन बाद में कांग्रेस का हाथ थाम लिया। जाटलैंड की उपमा से नवाजे जाने वाला बागपत चौधरी चरण सिंह के समय से ही उनके परिवार अभेद्य किला रहा है। यहां मुकाबला इसलिए दिलचस्प है क्योंकि इस बार यहां से अजित सिंह की जगह उनके बेटे जयंत चौधरी चुनाव मैदान में हैें। पिछले चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सत्यपाल सिंह ने रालोद अध्यक्ष अजित सिंह को हरा दिया था। अजित सिंह इस बार मुजफ्फरनगर से चुनावी मैदान में उतरेंगे। अगर 2014 के चुनाव को छोड़ दे तो यहां रालोद के अलावा यहां किसी अन्य दल के जीत हासिल करना टेढ़ी खीर साबित हुआ है।

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गौतमबुद्धनगर में 2014 के लोकसभा चुनाव में विजय पताका लहराने वाली भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अपना दबदबा बनाये रखा और पांचों विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। भाजपा ने एकबार फिर अपने सांसद महेश शर्मा पर भरोसा जताया है वहीं कांग्रेस ने अरविंद सिंह को टिकट दिया है। सतवीर नागर सपा-बसपा गठबंधन की ओर से अपने प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती देंगे। कुल मिलाकर यहां त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। गाजियाबाद सीट से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री वीके सिंह सिंह को फिर से टिकट दिया है जिसके कारण सबकी दिलचस्पी यहां होने वाले चुनावी मुकाबले को लेकर है। सपा-बसपा गठबंधन की ओर से सुरेश बंसल चुनाव मैदान में हैं, वहीं कांग्रेस ने डॉली शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है।

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मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भी हर एक की निगाहें टिकी हुई हैं। भाजपा ने इस सीट पर मौजूदा सांसद संजीव बालियान पर फिर से भरोसा जताया है। अब उनका सीधा मुकाबला गठबंधन प्रत्याशी एवं रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह से होगा। वर्ष 2013 के दंगों के बाद यह सीट हमेशा से ही सुर्खियों में रही है। इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटर हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहे हैं। मेरठ सीट पर पिछले दो दशकों से भाजपा का कब्ज़ा है। पिछले चुनाव में भाजपा के राजेन्द्र अग्रवाल यहां से लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए थे। इस बार उन्हें गठबंधन के बसपा प्रत्याशी हाजी मो. याकूब और कांग्रेस के हरेन्द्र अग्रवाल से तगड़ीचुनौेती मिलने के आसार हैं।

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