नयी दिल्ली , देश के जाने-माने विद्वानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने सरकार पर लोकतांत्रिक आवाजों को दबाने का आरोप लगाते हुए कहा कि दुनियाभर की सरकारें जहां कोरोना जैसी महामारी से लड़ रहीं है वहीं मोदी सरकार लॉक डाउन को एक अवसर मानकर असहमति वाली आवाजों को दबाकर मौलिक अधिकारों को खत्म कर रही है।
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य ए सी माइकल, सामाजिक कार्यकर्ता आभा भैया, पत्रकार व लेखक अनिल चमड़िया, गुजरात के सामाजिक कार्यकर्ता देव देसाई, लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर, शबनम हाशमी, जॉन दयाल, महेश पंड्या, कविता कृष्णन, मेधा पटकर, समाजशास्त्री नंदिता नारायण, अर्थशास्त्री प्रोफेसर प्रभात पटनायक, प्रोफेसर मानसी शाह, पत्रकार सुकुकर मुरलीधरन समेत कई विद्वानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक बयान जारी कर सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को लॉक डाउन के दौरान गिरफ्तारियों पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत असम में सामाजिक कार्यकर्ता अखिल गोगोई से शुरू हो गई जिनके विरुद्ध देशद्रोह समेत कई धाराएं लगाकर गिरफ्तार किया गया है। राजधानी में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। इसके तहत जामिया के दो छात्रों मीरान हैदर, सफूरा जरगर तथा एक पूर्व छात्र शिफा उर रहमान खान को कठोर कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर सरकार अपनी मंशा जाहिर कर रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार वास्तविक दोषियों को बचा रही है, जबकि, युवा छात्रों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को जिन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया था, उनको गलत तरीके से गिरफ्तार कर रही है सत्तारुढ़ दल से जुड़े कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा, संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे को बचाने का काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि हम लोग केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे इन अनैतिक प्रयासों की कड़ी निंदा करते हैं। हम उन लोगों के साथ एकजुटता के साथ खड़े हैं जिनको जबरन फंसाया गया है और उनकी तत्काल रिहाई की मांग करते हैं। हम यूएपीए जैसे काले कानून के खिलाफ एकजुट होने के लिए लोगों से अपील करते हैं।