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यादव महासभा का सच : आखिर क्यों हुआ यूपी में नेतृत्व परिवर्तन ?

लखनऊ, यूपी मेंअखिल भारतवर्षीय यादव महासभा द्वारा नेतृत्व परिवर्तन अनायास नही हुआ है। इसके पीछे छिपी है कड़वी सच्चाई।

यूपी में अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा का यादव समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। महासभा का प्रदेश अध्यक्ष का पद अत्यंत सम्माननीय  और गरिमापूर्ण पद है। लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ में पिछले कुछ दिनों से जारी घमासान से पद की गरिमा को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जगदेव सिंह यादव की करोना काल में असमय मृत्यु से शोकग्रस्त अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा ने  प्रदेश की जिम्मेदारी महासभा के राष्ट्रीय सचिव अशोक यादव को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सौंपी थी। वैसे तो नियमत: कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष पद पर निवर्तमान वरिष्ठ उपाध्यक्ष को बैठाना चाहिए था। लेकिन कई अनुभवी और वरिष्ठ उपाध्यक्ष की मौजूदगी के बावजूद राष्ट्रीय नेतृत्व ने अशोक यादव पर भरोसा जताया । कई अनुभवी पूर्व विधायकों, पूर्व एमएलसी जैसे  अनुभवी पदाधिकारियों को नजरअंदाज करते हुए अशोक यादव जोकि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हैं उन्हें यूपी की कमान सौंपी गई।

सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय नेतृत्व को यह आशा थी कि अशोक यादव जिम्मेदारी के साथ संगठन को सुचारू रूप से चलाएंगे और जिले से लेकर प्रदेश तक संगठन में तालमेल बैठायेंगे। लेकिन हुआ वो जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। हुआ ये कि कुछ ही दिनों में राष्ट्रीय नेतृत्व के पास कई जिलों से लगातार शिकायतें आने लगी। जिलों में दौरों के नाम पर नई परंपरा की शुरुआत हो गई।  जिला अध्यक्षों से अपने भव्य स्वागत के लिये आडंबरपूर्ण कार्य करवाना, अपनी गाड़ी की टंकी फुल करवाना, होटलों में एसी कमरों की बुकिंग करवाना और जिलाध्यक्षों से उनका भुगतान करवाने के लिए दबाव डालना, कार्यक्रमों में अपने अलावा किसी अन्य को बोलने ना देना, कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को सरेआम बेइज्जत करने आदि की तमाम शिकायतें आने लगीं। इस पर राष्ट्रीय नेतृत्व ने चेतावनी भी दी लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।

वहीं जब यादव समाज पर संकट का समय आया तो अशोक यादव दूर दूर तक नजर नही आये। अभी डेढ़ माह पूर्व ही प्रयागराज मे एक ही परिवार के 5 यादव मार दिये गये। जब समाज के लोगों ने अशोक यादव से संपर्क किया तो उन्होने कहा कि अभी हमारे पास समय नही है जब होगा तब आयेंगे । उसके कुछ ही दिन बाद चंदौली मे भी यादव परिवार पुलिसिया उत्पीड़न का शिकार हुआ। वहां पर भी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष के पास शोक संतप्त परिजनों से मिलने के लिये समय नहीं था। आखिरकार राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव को स्वयं जाना पड़ा। यादव महासभा के वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि क्षुब्ध होकर बांदा, चित्रकूट, फतेहपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर, जौनपुर, बनारस, महोबा , लखनऊ आदि जिलों के कई पदाधिकारियों ने अशोक यादव की कारगुजारियों का भंडाफोड़ करना शुरू कर दिया।

आखिर कार समाज हित में  मजबूर होकर राष्ट्रीय नेतृत्व को भरे दिल से अपना फैसला बदलना पड़ा। अपने विश्वसनीय कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक यादव को हटाकर महासभा ने इसबार समाज के वरिष्ठ और अनुभवी समाजसेवी कप्तान सिंह यादव को जिम्मेदारी सौंपने का मन बनाया । स्वच्छ छवि के कप्तान सिंह यादव इसके लिये तैयार नही हुये। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुये, कई बार मना करने के बावजूद, कप्तान सिंह यादव को ही यादव महासभा ने यूपी का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। जिसका सभी ने स्वागत किया।

लेकिन इतने पर भी सबक नहीं लिया गया। दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिये जोड़ तोड़ का काम फिर शुरू कर दिया गया है। नये प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा होते ही सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ जंग छेड़ दी गई। जैसे राष्ट्रीय नेतृत्व ने कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक यादव को हटाकर महा पाप कर दिया है।  तमाम खामियां गिनाते हुए उन्ही लोगों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिनके 1 साल पूर्व कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त होते समय कसीदे पढ़े गए थे। तब वही लोग सही थे और आज पद से हटाते ही वो लोग गलत हो गये हैं ?