इस विश्वविद्यालय में सामने आया एक और बड़ा फर्जीवाड़ा, अधिकारियों के उड़े होश
April 18, 2019
नई दिल्ली,किसी भी विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि लेना बड़े सम्मान के रूप में देखा जाता है। लेकिन, उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय (यूटीयू) में पीएचडी करने के लिए योग्यता नहीं ‘सौदेबाजी’ को महत्व दिया जा रहा है। विवि में पीएचडी के नियमों की अनदेखी और धांधली सामने आई है।
उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में पीएचडी ही नहीं बीटेक के रिजल्ट में भी बड़ा फर्जीवाड़ा हुआ है। अधिकारियों को पता नहीं और बीटेक का रिजल्ट जारी कर दिया गया। फिर बिना किसी कागजी औपचारिकता के रिजल्ट संशोधित भी कर दिया गया। शासन के निर्देश पर बनी जांच समिति की प्राथमिक रिपोर्ट में ऐसी चौंकाने वाली कई बातें सामने आई हैं। लिहाजा, जांच समिति ने इस मामले में विजिलेंस जांच कराने की सिफारिश भी की है। शासन के निर्देश पर गठित जांच समिति ने प्राथमिक जांच में न केवल पीएचडी बल्कि बीटेक की परीक्षाओं में भी बड़ा गोलमाल पकड़ा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि किसी भी रिजल्ट से संबंधित कागजी दस्तावेज नहीं हैं।
रिजल्ट केवल कंप्यूटर में एक्सल शीट में बनाया गया है, जिसका प्रिंट निकालकर दिया जाता है। जांच समिति ने इस रिजल्ट में कभी भी किसी के द्वारा संशोधन करने की आशंका जताई है। दूसरी बात यह है कि जो रिजल्ट विवि ने जारी किया, उस पर आधिकारिक हस्ताक्षर नहीं थे। कुछ छात्रों की उत्तर पुस्तिकाओं का दोबारा मूल्यांकन भी करा लिया गया और रिवाइज रिजल्ट जारी कर दिया गया।
इस पुर्नमूल्यांकन के लिए किसने आदेश किए, इसका भी कोई प्रमाण विवि में उपलब्ध नहीं था। आपको बता दें कि इस पूरे प्रकरण में शासन ने करीब चार माह पूर्व विवि को कार्रवाई के आदेश जारी किए थे लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं गई है। दूसरी ओर, विवि की कुलसचिव प्रो. अनीता रावत का कहना है कि मामले में कार्रवाई की जा रही है। क्या ऐसा संभव है कि कॉपी चेक न हो, मार्क्स चढ़े न हों और केवल बाहर नंबर भर दिए जाएं। तकनीकी विवि में मूल्यांकन के नाम पर ऐसा मामला भी सामने आया। जांच समिति ने एक संस्थान के छात्र की कॉपी चेक की तो चेकिंग का कोई निशान तक नहीं था। सीधे बाहर अंक भर दिए गए थे। समिति ने इसकी विस्तार से जांच कराने की सिफारिश की है।
जांच समिति ने पूर्व में पीएचडी प्रवेश परीक्षा समन्वयक की जिम्मेदारी संभालने वाले अरुण कुमार शर्मा पर भी सवाल खड़े किए हैं। समिति का तर्क है कि नियम विरुद्ध पीएचडी प्रवेश परीक्षा की जिम्मेदारी ऐसे व्यक्ति को दी गई, जो कि खुद वहां से पीएचडी कर रहा है और जो उपनल के माध्यम से भर्ती है। जबकि इस मामले में अरुण कुमार शर्मा का कहना है कि उन्हें न तो ऐसी किसी जांच की जानकारी है और न ही उन्होंने कोई नियम विरुद्ध काम किया है। कुलपति के निर्देश पर उन्होंने केवल ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा का आयोजन कराया था, जिसके पूरे दस्तावेज विवि में उपलब्ध हैं। उन्होंने जांच समिति को फर्जी करार दिया और कहा कि भविष्य में अगर उनसे सवाल पूछा जाएगा तो वह जवाब देने को तैयार हैं।