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22 भाषाओं मे बोले उप राष्ट्रपति नायडू, कहा- मातृभाषा में विकास की सभी संभावनाएं

नयी दिल्ली,  उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने देश के समग्र विकास के लिए मातृभाषा के इस्तेमाल को अनिवार्य बनाने पर जोर देते हुए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आज यहां आयोजित एक कार्यक्रम में 22 भाषाओं का इस्तेमाल किया।

श्री नायडू ने ‘अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस’ पर एक कार्यक्रम में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल देश की 22 भाषाओं में लोगों को मातृभाषा दिवस की शुभकामना दी। उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत में देश के सभी नागरिकों को उनकी भाषाओं में शुभकामनाएं दीं।

उप राष्ट्रपति ने कहा कि मातृभाषा में विकास की सभी संभावनाएं है और इसमें बच्चा जो सीखता है वह रटता नहीं बल्कि अपनी सोच के साथ विषय को आत्मसात कर पढ़ता है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का प्रस्ताव बंगलादेश ने रखा था जिसके आधार पर यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया।

मातृभाषा के संबंध में देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार पटेल ने कहा था मातृभाषा में सीख नहीं मिलने से बच्चे सिर्फ़ रटते हैं और सीखते नहीं है। यदि मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है तो बच्चा सीधे विषय पर जाता है क्योंकि उस पर भाषा सीखने का दबाव नहीं होता है।

श्री नायडू ने उच्चतम न्यायालय के छह भाषाओं में निर्णय की प्रतियां उपलब्ध कराने के फैसले का स्वागत किया और कहा कि निचली अदालतों को भी शीर्ष न्यायालय के इस निर्णय का अनुकरण करना चाहिए और देश के लोगों को अपनी भाषा में जानकारी देनी चाहिए।
स्थानीय स्तर पर वहां की भाषा को अनिवार्य बनाने की जरूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन की भाषा स्थानीय होना आवश्यक है। उन्होंने कहा “मैं कहता हूं कि मातृभाषा हमारी आंखों की तरह और अन्य भाषाएं चश्मे की तरह हैं। हमारी बुनियादी दृष्टि होने पर ही चश्मे हमारी मदद करते हैं।”
उपराष्ट्रपति ने कहा “भाषा मानव विकास के साथ विकसित होती है और निरंतर प्रयोग से पोषित होती है। यदि आप किसी भाषा का प्रयोग नहीं करते हैं, तो आप उस भाषा को खो देते हैं और जब कोई भाषा प्रयोग में घटती जाती है, तो वह अपने साथ संपूर्ण ज्ञान प्रणाली को भी ले जाती है।”
भाषा के संरक्षण और विकास के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ ही सजग तथा ठोस कार्रवाई की जरूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि समावेशी विकास के लिए भाषा एक उत्प्रेरक बननी चाहिए इसलिए लोगों की भाषा ही प्रशासन की भाषा होनी चाहिए। गांधीवादी काका साहेब कालेलकर ने कहा था “यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है, तो वह जनता की भाषा में ही चलाना होगा|”
उन्होंने भाषा को संरक्षित करने में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, सिनेमा और टेलीविजन की अहम भूमिका बताई और कहा कि हमें हर स्थिति में अपने बच्चों को अपनी भाषा बोलने के लिए प्रेरित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी अगली पीढ़ी तक स्वस्थ रूप में अपनी मातृ भाषा को पहुंचाएं।