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लीजेंड पहलवान महाबली सतपाल के जीवन की पहली कमाई जानकर हो जायेंगे हैरान?

नयी दिल्ली, भारतीय कुश्ती के लीजेंड पहलवान और सर्वश्रेष्ठ कोच महाबली सतपाल ने अपने जीवन में अथाह यश अर्जित किया है लेकिन उनके जीवन की पहली कमाई चार चवन्नी थी।

द्रोणाचार्य अवार्डी और पद्मभूषण से सम्मानित सतपाल देश में कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के चलते पिछले एक महीने से ज्यादा समय से अपने अखाड़े छत्रसाल स्टेडियम से दूर हैं और खुद को अपने घर के अंदर व्यस्त रखे हुए हैं।

सतपाल ने अपने करियर को याद करते हुए कहा, “मैं 15 मई 1967 को गुरु हनुमान के अखाड़े में आया था। कुछ समय बाद मैंने अपनी पहली कुश्ती लड़ी थी। मैंने एक ही दिन चार कुश्ती लड़ी थी और चारों जीती थी। मुझे ईनाम में चार चवन्नी (25 पैसे का सिक्का) जीती थी। वह मेरे कुश्ती करियर की शुरुआत थी और उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।”

1982 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले महाबली सतपाल ने कहा, “मैं जब पांचवीं कक्षा में पढ़ता था तो किसी बात पर कुछ लड़कों ने मुझे पीट दिया था और मुझे खून निकल आया था तथा आंख भी सूज गयी थी। मेरे पिताजी अगले दिन अखाड़े में ले गए ताकि मैं कुश्ती सीख सकूं। दो-तीन दिन में उन्हें लग गया कि मैं अच्छे दांव -पेच लगा सकता हूं। जब मैं छठी कक्षा में था तो मैंने जिद पकड़ ली कि मैं अपने गांव बवाना से दिल्ली जाकर कुश्ती सीखूंगा। घरवाले इसकी इजाजत देने को तैयार नहीं थे लेकिन मेरी जिद के आगे उन्हें हारना पड़ा और फिर मेरे पिताजी मुझे गुरु हनुमान अखाड़े ले आये।”

गुरु हनुमान अखाड़े के अपने पहले अनुभव के बारे में सतपाल ने कहा, “शुरू में मेरा अखाड़े में दिल नहीं लग रहा था क्योंकि मेरी उम्र के पहलवान वहां नहीं थे। मैंने वहीं स्थित बिरला व्यायामशाला के कामगारों के बच्चों से दोस्ती की और फिर अखाड़े में मेरा दिल लगने लगा। मेरी पहली कुश्ती एक दिन में चार कुश्तियां थीं जिनमें जीतने पर मुझे चार चवन्नी मिली थी। इससे मेरे अंदर विश्वास आया कि मैं जीवन में कुछ कर सकता हूं।”

महाबली सतपाल ने कहा, “उस समय जामा मस्जिद दंगल हुआ करता था जिसे देखने चार-पांच हजार दर्शक इकट्ठा होते थे। उस दंगल में मैंने एक दिन में लगातार नौ कुश्तियां जीतकर नौशेरवां खिताब जीता था और आजादी के बाद नौशेरवां खिताब जीतने वाला मैं पहला व्यक्ति था। इस दंगल में मैंने 500 से ज्यादा कुश्तियां जीती थीं।”

सतपाल ने कहा, “मैंने दिल्ली स्कूल गेम्स में 46 किग्रा वर्ग में पहला स्थान हासिल किया था और दिसम्बर 1968 में नेशनल स्कूल गेम्स में स्वर्ण पदक जीता था। मैंने 1971 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास स्थित ककरौली में एक दिन के अंदर 21 कुश्तियां जीती थीं जो आज भी एक रिकॉर्ड है।”

गुरु हनुमान के सबसे प्रिय शिष्य सतपाल ने बताया कि अखाड़े में आने के दो साल बाद जाकर उन्होंने जीवन में पहली बार बादाम के दर्शन किये थे।

पहली बार भारत कुमार बनने के बारे में सतपाल ने बताया कि भारत कुमार दिल्ली सरकार का दंगल था और इसमें कॉलेज में पढ़ने वाले ही हिस्सा ले सकते थे। उन्होंने कहा, “ मैं उस समय 10वीं कक्षा में पढ़ता था और इस दंगल में हिस्सा लेने के लिए मैंने बनारस के एक विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और फिर इस दंगल में उतरा और भारत कुमार बना।”

अपने करियर में रिकॉर्ड 3000 कुश्तियां जीतने वाले और वर्ष 1974 में राष्ट्रीय चैंपियन बनने वाले सतपाल ने बताया कि उन्होंने उसी वर्ष पंजाब के लुधियाना में रुस्तमे-हिन्द दंगल लड़ा था और इस दंगल में जीत हासिल कर सबसे कम उम्र के रुस्तमे-हिन्द बने थे।

गुरु हनुमान अखाड़े के अपने पहले अनुभव के बारे में सतपाल ने कहा, “शुरू में मेरा अखाड़े में दिल नहीं लग रहा था क्योंकि मेरी उम्र के पहलवान वहां नहीं थे। मैंने वहीं स्थित बिरला व्यायामशाला के कामगारों के बच्चों से दोस्ती की और फिर अखाड़े में मेरा दिल लगने लगा। मेरी पहली कुश्ती एक दिन में चार कुश्तियां थीं जिनमें जीतने पर मुझे चार चवन्नी मिली थी। इससे मेरे अंदर विश्वास आया कि मैं जीवन में कुछ कर सकता हूं।”

महाबली सतपाल ने कहा, “उस समय जामा मस्जिद दंगल हुआ करता था जिसे देखने चार-पांच हजार दर्शक इकट्ठा होते थे। उस दंगल में मैंने एक दिन में लगातार नौ कुश्तियां जीतकर नौशेरवां खिताब जीता था और आजादी के बाद नौशेरवां खिताब जीतने वाला मैं पहला व्यक्ति था। इस दंगल में मैंने 500 से ज्यादा कुश्तियां जीती थीं।”

सतपाल ने कहा, “मैंने दिल्ली स्कूल गेम्स में 46 किग्रा वर्ग में पहला स्थान हासिल किया था और दिसम्बर 1968 में नेशनल स्कूल गेम्स में स्वर्ण पदक जीता था। मैंने 1971 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास स्थित ककरौली में एक दिन के अंदर 21 कुश्तियां जीती थीं जो आज भी एक रिकॉर्ड है।”

गुरु हनुमान के सबसे प्रिय शिष्य सतपाल ने बताया कि अखाड़े में आने के दो साल बाद जाकर उन्होंने जीवन में पहली बार बादाम के दर्शन किये थे।

पहली बार भारत कुमार बनने के बारे में सतपाल ने बताया कि भारत कुमार दिल्ली सरकार का दंगल था और इसमें कॉलेज में पढ़ने वाले ही हिस्सा ले सकते थे। उन्होंने कहा, “ मैं उस समय 10वीं कक्षा में पढ़ता था और इस दंगल में हिस्सा लेने के लिए मैंने बनारस के एक विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और फिर इस दंगल में उतरा और भारत कुमार बना।”

अपने करियर में रिकॉर्ड 3000 कुश्तियां जीतने वाले और वर्ष 1974 में राष्ट्रीय चैंपियन बनने वाले सतपाल ने बताया कि उन्होंने उसी वर्ष पंजाब के लुधियाना में रुस्तमे-हिन्द दंगल लड़ा था और इस दंगल में जीत हासिल कर सबसे कम उम्र के रुस्तमे-हिन्द बने थे।