झांसी, हॉकी के महान भारतीय खिलाड़ी “ मेजर ध्यानचंद ” जो इस खेल के जादूगर के नाम से जाने गये ,उनमें देशप्रेम का जज्बा इतना मजबूत था कि बड़े बडे देशों के प्रमुखों की ओर से दिये गये बड़े बडे ऑफरों को उन्होंने पल में ठुकरा दिया था।
मेजर ध्यानचंद के पुत्र और जाने माने हॉकी खिलाडी अशोक ध्यानचंद ने अपने पिता की 116वीं जयंती की पूर्वसंध्या पर हॉकी के जादूगर के व्यक्तित्व के बारे में शनिवार को यूनीवर्ता के साथ खास बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उस समय जब उनके नेतृत्व में दुनिया में भारतीय टीम की तूती बोलती थी, कई देशों के प्रमुखों की ओर से पिताजी को कई तरह के ऑफर दिये लेकिन उन्होंने ऐसे सभी ऑफरों को ठुकराते हुए देशप्रेम को सर्वोपरि रखा। कई देशों ने उन्हें अपनी टीम में खेलने और उनकी टीम को सिखाने के बडे ऑफर दिये लेकिन ध्यानचंद जी ने यह कहते हुए सभी को ठुकरा दिया कि तुम्हारी टीम को सिखाऊं और जब वह टीम मेरे देश की टीम के खिलाफ खेले तो मैं वहां खड़ा होकर अपनी टीम को हारते हुए देखूं यह कभी नहीं कर सकता।
ऐसे ही एक और घटना को याद करते हुए अशोक ध्यानचंद ने बताया कि जर्मनी में 1936 ओलंपिक में जीत हासिल करने के बाद जश्न मनाती टीम के बीच से दद्दा गायब थे। जब उन्हें ढूंढा गया तो वह मैदान में यूनियन जैक के लहराते झंडे के नीचे खड़े रो रहे थे। साथियों ने जीत के बाद भी दद्दा के इस दु:ख का कारण जानना चाहता तो उन्होंने कहा कि काश इस जगह हमारा तिरंगा लहरा रहा होता। यह घटनाएं मेरे मन पर अमिट छाप छोड़ गयी और साफ करती हैं कि राष्ट्रप्रेम पिताजी के लिए क्या मायने रखता था। आज उनकी 116वीं जयंती की पूर्वसंध्या पर अगर सभी खिलाड़ी देशप्रेम के इतने ही गहरे भाव को मन में रखकर हॉकी को अपने पुराने गौरव पर पहुंचाने के लिए जी जान लगाकर प्रयास करें तो यही दद्दा को हम सभी की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी अब्दुल अजीज़ ने टोक्यो ओलंपिक मे भारतीय खिलाड़ियों को मिली बड़ी सफलता पर बधाई देते हुए और देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार का नाम हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखे जाने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि अब खिलाड़ियों और खेल जगत से जुड़े लोगों पर और जिम्मेदारियां आ गयीं हैं। देश में खेलों के क्षेत्र में अब भी बहुत काम किये जाने की दरकार है। जिला स्तर पर खेल सुविधाओं को बढ़ाने से लेकर इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों के आर्थिक हितों का साधने के लिए गंभीर प्रयास करने से न केवल खेल में सुधार होगा बल्कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे खेलों में करियर की संभावनाओं को तलाश करेंगे।
यह भी जरूरी है कि खिलाड़ियों को नौकरियां भी खेल विभाग के तहत ही दी जाएं ताकि संयास लेने के बाद भी अनुभवी खिलाड़ी खेल से जुड़े रहें और वह युवाओं का बेहतर मार्गदर्शन कर पायें। युवा खिलाड़ी अनुभवी खिलाड़ियों के सानिध्य में रहें और उनसे खेल की बारीकियों को जानकर अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार कर पायें। इस तरह खेल के क्षेत्र में भी एक चेन तैयार करने की जरूरत है ताकि अनुभवी खिलाडी नौकरी करते हुए भी युवा खिलाड़ियों की मदद कर पाये और युवा खिलाड़ी उनके अनुभव से लाभ ले सकें। अगर देश में ऐसा संभव हो जाऐ तो फिर बड़ी बड़ी खेल प्रतियोगिताओं में हमारा देश भी पदक तालिका में अग्रिम पंक्ति में खड़ा नजर आयेगा।
जिला क्रिकेट संघ के सचिव बृजेंद्र यादव ने कहा कि इस वर्ष का राष्ट्रीय खेल दिवस हम झांसीवासियों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया है। हमारे “ दद्दा” के नाम पर देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार का नाम रखे जाने के लिए केंद्र सरकार का धन्यवाद लेकिन दद्दा को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “ भारत रत्न” दिये जाने की हमारी मांग आज भी बरकरार है । केंद्र सरकार से निवेदन है कि हॉकी और देश के सम्मान को उच्चतम स्तर तक ले जाने में बड़ा योगदान देने वाले हमारे दद्दा को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यह वर्ष हम भारतवासियों के लिए विशेष है ओलंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है और सरकार ने भी उनके प्रयासों को न केवल सराहा है बल्कि पूरा सम्मान भी दिया।
ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों से खिलाड़ियों की उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं। खेलों के लिए जमीनी स्तर से मजबूत प्रयास किये जाने जरूरी हैं। हर जिले स्तर पर एक खेल एकेडमी बनायी जानी चाहिए जिसमें सरकार की ओर से प्रेषक नियुक्त किये जाएं। सरकारी एकेडमी में बच्चों को बेहतर कोच , अपने खेल के लिए आवश्यक सामग्री , उनके बेहतर खान पान की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है। इन छोटी छोटी लेकिन बेहद महत्वपूर्ण चीजों से खेलों में सुधार हो सकता है।
झांसी में एक सरकारी खेल एकेडमी की बेहद दरकार है। प्राइवेट जो एकेडमी हैं उनकी बड़ी बड़ी फीस बुंदेलखंड के पिछडे इलाके के प्रतिभावान खिलाड़ियों के लिए चुका पाना संभव नहीं है ऐसे में सरकारी एकेडमी होने से यहां खिलाड़ियों को काफी फायदा होगा।
खेल दिवस पर सभी अभिभावकों से अनुरोध है कि अगर कोई बच्चा खेलों के प्रति आकर्षित है तो उसे उसी खेल में प्रोत्साहित करें और खेल से जुड़ी उसकी जरूरतों को पूरा करें। विद्यालय भी खेलों को प्रोत्साहित करें और उसके बाद सरकार, विद्यालय स्तर के अच्छे खिलाडियों को एकेडमी में मंझे खिलाड़ी के रूप में तैयार करने की पृष्ठभूमि तैयार करे। यदि इस तरह छोटे स्तर से हम मिलकर प्रयास करें और बुंदेलखंड में बच्चों को खेलों में प्रोत्साहित करने तथा तराशने के लिए गंभीर प्रयास करें तो बड़ी अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारतीयों का परचम लहरायेगा।