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दिव्य औषधीय गुणों से भरपूर है करेला

karelaलेटिन में मोर्डिका तथा अंग्रेजी में बिटर गॉर्ड के नाम से पुकारा जाने वाला करेला बेल पर लगने वाली सब्जी है। इसका रंग हरा होता है इसकी सतह पर उभरे हुए दाने होते हैं। इसके अंदर बीज होते हैं। यह अपने स्वाद के कारण काफी प्रसिद्ध है। इसका स्वाद बहुत कडुवा होता है इसलिए प्रायः कडुवे (बुरे) स्वभाव वाले व्यक्ति की तुलना करेले से कर दी जाती है।

एक अच्छी सब्जी होने के साथ−साथ करेले में दिव्य औषधीय गुण भी होते हैं। यह दो प्रकार का होता है बड़ा तथा छोटा करेला। बड़ा करेला गर्मियों के मौसम में पैदा होता है जबकि छोटा करेला बरसात के मौसम में। चूंकि इसका स्वाद बहुत कडुवा होता है इसलिए अधिकांश लोग इसकी सब्जी को पसंद नहीं करते। इसके कड़वेपन को दूर करने के लिए इसे नमक लगाकर कुछ समय तक रखा जाता है। करेले की तासीर ठंडी होती है। यह पचने में हल्का होता है। यह शरीर में वायु को बढ़ाकर पाचन क्रिया को प्रदीप्त कर, पेट साफ करता है।

प्रति 100 ग्राम करेले में लगभग 92 ग्राम नमी होती है। साथ ही इसमें लगभग 4 ग्राम कार्बोहाइट्रेट, 1.5 ग्राम प्रोटीन, 20 मिलीग्राम कैल्शियम, 70 मिलीग्राम फास्फोरस, 1.8 मिलीग्राम आयरन तथा बहुत थोड़ी मात्रा में वसा भी होता है। इसमें विटामिन ए तथा विटामिन सी भी होता है जिनकी मात्रा प्रति 100 ग्राम में क्रमशः 126 मिलीग्राम तथा 88 मिलीग्राम होती है। नमी अधिक तथा वसा कम मात्रा में होने के कारण यह गर्मियों के लिए बहुत अच्छा है। इसके प्रयोग से त्वचा साफ होती है और किसी प्रकार के फोड़े−फुन्सी नहीं होते। यह भूख बढ़ाता है, मल को शरीर से बाहर निकालता है। मूत्र मार्ग को भी यह साफ रखता है। इसमें विटामिन ए अधिक होने के कारण यह आखों की रोशनी के लिए बहुत अच्छा होता है। रतौंधी होने पर इसके पत्तों के रस का लेप थोड़ी−सी काली मिर्च मिलाकर लगाना चाहिए। इस रोग के कारण रोगी को रात में कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।

विटामिन सी की अधिकता के कारण यह शरीर में नमी बनाए रखता है और बुखार होने की स्थित मिें बहुत लाभकारी होता है। करेले की सब्जी खाने से कभी कब्ज नहीं होती यदि किसी व्यक्ति को पहले से कब्ज हो तो वह भी दूर ही जाती है। इससे एसीडिटी, छाती में जलन और खट्टी डकारों की शिकायत भी दूर हो जाती है। बढ़े हुए यकृत, प्लीहा तथा मलेरिया बुखार में यह बहुत फायदेमंद सिद्ध होता है। इसके लिए रोगी को करेले के पत्तों या कच्चे करेले को पीसकर पानी में मिलाकर पिलाया जाता है। यह इस दिन में कम से कम तीन बार पिलाना चाहिए। कच्चा करेला पीसकर पिलाने से पीलिया भी ठीक हो जाता है। रस निकालने से पहले पत्तों या करेले को ठीक से रगड़कर धोना जरूरी होता है क्योंकि आजकल फल सब्जियों को रोगों तथा कीड़ों से बचाने के लिए अनेक रसायन छिड़के जाते हैं जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। जोड़ों के दर्द तथा गठिया रोग में करेले की सब्जी बिना कडुवापन दूर किए दिन में तीनों समय अर्थात सुबह नाश्ते में और फिर दोपहर तथा रात्रि के भोजन में खाई जानी चाहिए।

फोड़े−फुन्सी तथा रक्त विकार में करेले का रस लाभकारी होता है। इन पर करेले के पत्तों का लेप भी किया जा सकता है। करेले का रस निकालते समय यह ध्यान रखें कि यह बहुत ज्यादा पतला न हो और उसे साफ बर्तन में निकाला जाए। त्वचीय रोग, कुष्ठ रोग तथा बवासीर में करेले को मिक्सी में पीसकर प्रभावित स्थान पर हल्के−हल्के हाथों से लेप लगाना चाहिए। यह लेप नियमित रूप से रात को सोने से पहले लगाएं। जब तक इच्छित लाभ न हो लेप लगाना जारी रखना चाहिए। करेले के रस की एक चम्मच मात्रा में शक्कर मिलाकर पीने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। यह शरीर में उत्पन्न टॉकसिन्स तथा उपस्थित अनावश्यक वसा को दूर करता है अतः यह मोटापा दूर करने में भी विशेष रूप से सहायक होता है। जिस स्त्री को मासिक स्राव बहुत कठिन तथा दर्द भरा हो तो उसे भी करेले के रस का सेवन करना चाहिए। इसका सेवन गर्भवती स्त्रियों में दूध की मात्रा भी बढ़ाता है।

यह शारीरिक दाह को भी दूर करता है। शरीर के जिस अंग में जलन हो वहां करेले के पत्तों का रस मलना चाहिए। अपनी शीतल प्रकृति के कारण यह तुरन्त लाभ पहुंचाता है। मधुमेह के रोगियों के लिए करेला एक वरदान है। उन्हें करेले का सेवन अधिक करना चाहिए। बिना कड़वापन दूर किए करेले की सब्जी तथा इसके पत्तों या कच्चे करेले का रस पूरी गर्मियों में लगातार सुबह−शाम नियमित रूप से लेने पर रक्त में शर्करा का स्तर काफी कम हो जाता है। करेले का रस पेट के कीड़ों को भी दूर कर देता है। आयरन (लौह तत्व) की अधिकता के कारण करेला एनीमिया (रक्ताल्पता) को भी दूर करता है। करेले का रस तीनों दोषों अर्थात वात पित्त और कफ दोष का नाश करता है। स्माल पॉक्स, चिकिन पॉक्स तथा खसरे जैसे रोगों में करेले को उबाल कर रोगी को खिलाया जाता है।

 

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