मायावती के जन्मदिन पर विशेष- बहुजन आंदोलन ने बदल दी, एक शिक्षिका के जीवन की दिशा
January 15, 2018
लखनऊ , दलित नेता के रूप में उभरीं बसपा प्रमुख मायावती ने आज देश की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना ली है। शिक्षिका से राजनेता बनीं मायावती ने बसपा संस्थापक कांशीराम के सपनों को साकार करने के लिये अपना पूरा जीवन बहुजन आंदोलन को समर्पित कर दिया। पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और दलित वर्ग के अधिकारों की बात करने वाली आज वह भारत में एकमात्र नेता हैं।
दिल्ली में प्रभु दयाल और रामरती के परिवार में जन्मीं चंदावती देवी को आज पूरा भारत ‘बहनजी’ के नाम से जानता हैं।पिता प्रभु दयाल भारतीय डाक-तार विभाग में वरिष्ठ लिपिक रहे। मां रामरती ने अनपढ़ होने के बावजूद अपने आठ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का पूरा जिम्मा उठाया। प्रभु दयाल ने अपनी बेटी को प्रशासनिक अधिकारी के रूप में देखने का सपना संजोया था। पिता का सपना साकार करने के लिए मायावती ने काफी पढ़ाई भी की।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज से कला विषयों में स्नातक किया। गाजियाबाद के लॉ कॉलेज से कानून की परीक्षा पास की और मेरठ यूनिवर्सिटी के वीएमएलजी कॉलेज से शिक्षा स्नातक (बी.एड.) की डिग्री ली। शिक्षा स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने दिल्ली के ही एक स्कूल में बतौर शिक्षिका के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।
इसी दौरान, वर्ष 1977 में उनकी जान-पहचान कांशीराम से हुई। कांशीराम और उनके बहुजन आंदोलन ने मायावती के जीवन पर बहुत प्रभाव डाला। मायावती के जीवन में राजनैतिक और सामाजिक आंदोलनों के बढ़ते प्रभाव को देख पिता प्रभु दयाल चिंतित हुए। उन्होंने बेटी को कांशीराम के पदचिह्नों पर न चलने का सुझाव दिया, लेकिन मायावती ने अपने पिता की बातों को अनसुना कर दलितों के उत्थान के लिए कांशीराम द्वारा बड़े पैमाने पर शुरू किए गए कार्यों और आंदोलनों में शामिल होना शुरू कर दिया।
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लगभग सात साल तक कांशीराम से जुड़े रहने के बाद वह 1984 में कांशीराम द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गईं। वर्ष 1984 में ही मायावती ने मुजफ्फरनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट से अपना प्रथम चुनाव अभियान शुरू किया लेकिन उन्हें जनता का साथ नहीं मिला। उन्होंने लगातार चार साल तक कड़ी मेहनत की और वर्ष 1989 का चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचीं। इस चुनाव में बीएसपी को 13 सीटें मिलीं। खुद मायावती बिजनौर लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुईं।
वर्ष 1995 में हुए विधानसभा चुनाव में गठबंधन की सरकार में, उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया। वह उत्तर प्रदेश में दलित मुख्यमंत्री बनने वाली पहली महिला हैं। मायावती 13 जून, 1995 से 18 अक्टूबर, 1995 तक मुख्यमंत्री रहीं। उनका पार्टी के प्रति लगाव और लोगों मे लोकप्रियता देख कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मायावती वर्ष 2001 में पार्टी अध्यक्ष हो गयीं। मायावती ने दूसरी बार 21 मार्च 1997 से 20 सितंबर 1997, 3 मई 2002 से 26 अगस्त 2003 और चौथी बार 13 मई 2007 से 6 मार्च 2012 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कमान संभाली।
उपलब्धियों के साथ-साथ विवादों का मायावती से चोली-दामन का साथ रहा। अपने चौथे कार्यकाल के दौरान मायावती ने राज्य के विभिन्न जगहों पर बौद्ध धर्म और दलित समाज से संबंधित कई मूर्तियों का निर्माण करवाया, जिसमें नोएडा के एक पार्क में बनीं हाथियों की मूर्तियां काफी विवादों में रहीं।मायावती ने अपने राजनैतिक जीवन मे मुश्किल दौर को भी झेला हैं। छह सालों से वे यूपी में सत्ता से बाहर हैं।
मायावती को 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे तगड़ा झटका लगा। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपी बस 19 सीटों पर सिमट गई। पार्टी के पास इतने भी एमएलए नहीं हैं कि वे अपने बहिनजी को राज्य सभा भेज सकें। लोगों ने बीएसपी को ख़त्म मान लिया ।
लेकिन हाल में हुए यूपी के नगर निकाय चुनाव मे मायावती ने यह दिखा दिया कि यूपी की राजनीति मे विरोधी उन्हे नजर अंदाज तो कर सकतें हैं पर समाप्त नही। मेरठ और अलीगढ़ में उनकी पार्टी के नेता मेयर का चुनाव जीत गए। सहारनपुर और आगरा में भी बसपा ने काँटे का मुक़ाबला किया.।उम्मीद है कि 2019 के लोकसभा चुनाव मे एकबार फिर वह चौंकाने वाले अंदाज मे वापसी करेंगी।