85 प्रतिशत एससी एसटी उत्पीड़न की शिकायतें सही, पर सुप्रीम कोर्ट चूक मानने को तैयार नही
May 4, 2018
नई दिल्ली, 85 प्रतिशत एससी एसटी उत्पीड़न की शिकायतें सही होने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट अपनी चूक मानने को तैयार नही है। यह आंकड़ा केद्र सरकार ने अपनी दलील मे सुप्रीम कोर्ट मे रखा. लेकिन एससी एसटी फैसले में सुधार के लिए केंद्र सरकार की दलीलें न मानते हुए, सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर अडिग रहा और तत्काल तर्क देने से भी नहीं चूका। मामले पर अब 16 मई को सुनवाई है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर रोक की मांग की, जिसमें एससी एसटी कानून के तहत भी तत्काल एफआइआर और गिरफ्तारी नहीं हो सकती है। सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण ही कुछ लोगों की जानें भी गईं। लेकिन कोर्ट अपने फैसले पर अडिग रही , बल्कि सीधा जवाब दिया – ‘फैसला किसी को अपराध करने को नहीं कहता है।’
केंद्र सरकार ने आंकड़े देते हुए कहा कि महज 15 प्रतिशत शिकायतें झूठी पाई गई। कोर्ट ने तत्काल जवाब दिया- इसका यह मतलब नहीं कि बाकी के 85 प्रतिशत मामले सही हैं। हम नहीं कह रहे आंकड़े देखिए। तभी न्यायमित्र खड़े हो गए और कहा- 75 फीसद मामलों में आरोपी बरी हो गए। दलितों पर अत्याचार का ये आलम है कि दूल्हे को घोड़े से उतार दिया जाता है। अखबारों में आयी ऐसी खबरों का हवाला दिया।
इस बार सरकार का पक्ष रखते हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि फैसला गलत है। कोर्ट कानून की व्याख्या कर सकता है, लेकिन कानून नहीं बना सकता। कोर्ट शून्यता भरने के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकता है, लेकिन मौजूदा कानून के खिलाफ निर्देश नहीं दे सकता। इसके अलावा इस कानून में शिकायत मिलने पर पुलिस तत्काल एफआइआर दर्ज करने को बाध्य है जबकि कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है।
इन दलीलों को नकारते हुए न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की पीठ ने कहा कि फैसले में एफआईआर दर्ज करने पर रोक नहीं है सिर्फ डीएसपी को पहले शिकायत जांचने को कहा गया है और अगर डीएसपी संतुष्ट हैं कि शिकायत झूठी नहीं है तो वो सीधे भी एफआइआर दर्ज कर सकता है।