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जनगणना मे ओबीसी की गिनती- मोदी सरकार ने पिछड़ों को दिखाया चुनावी लालीपाप ?

नई दिल्ली,  2021 में आम जनगणना के दौरान ओबीसी के आंकड़े अलग से जुटाए जाएंगे। ओबीसी नेताओं की ओर से लंबे समय से पिछड़ी जातियों की जनगणना कराने की मांग की जा रही थी। माना जा रहा है कि इस फैसले से मोदी सरकार 2019 के चुनाव में ओबीसी वोटर्स को साधने का प्रयास कर रही है।

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2019 के आम चुनावों के पहले ओबीसी की जनगणना कराने की घोषणा को और ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के फैसले को राजनीतिक और चुनावी रूप से काफी अहम माना जा रहा है। विपक्ष लगातार सरकार पर दलित और पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगाती रही है, वहीं मोदी सरकार ने बार-बार अपनी घोषणाओं और योजनाओं से दलित और पिछड़ों के प्रति अपनी सजगता जाहिर करने की कोशिश की है।

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निश्चय ही ओबीसी की जनगणना करा कर मोदी सरकार ने मास्टर स्ट्रोक खेला है। लेकिन मोदी सरकार का पिछला इतिहास यदि हम देखे तो यह घोषणा भी मोदी सरकार द्वारा पिछड़ों को दिखाया चुनावी लालीपाप ही है ? मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल मे एक भी ठोस कार्य ओबीसी वर्ग के हित मे नही किया गया है। इसलिये मोदी सरकार के ओबीसी की गिनती कराये जाने के फैसले को भी महज लोकसभा चुनाव मे पिछड़े वर्ग का वोट पाने के लिये दिखाये जा रहे लालीपाप के रूप मे देखा जा रहा है।

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पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिये उनकी गिनती होना बहुत जरूरी कार्य है। मंडल कमीशन के आधार पर ओबीसी को 27 फीसद का आरक्षण दे दिया गया, लेकिन मंडल कमीशन की रिपोर्ट खुद 1931 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित थी। वहीं 2006 में ओबीसी की जनसंख्या का अंदाजा लगाने के लिए एनएसएसओ सर्वे किया गया था, इस सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल जनसंख्या का 41 फीसदी ओबीसी है। हजारों करोड़ रूपये खर्च करके 2011 की जनगणना में सभी जातियों की गिनती की गई थी। लेकिन मोदी सरकार द्वारा अबतक उनके अंतिम आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।

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ओबीसी नेता लंबे समय से पिछड़े वर्गो की अलग से जनगणना की मांग कर रहे थे, ताकि आरक्षण और अन्य विकास योजनाओं में उनकी सही भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। ऐसे में इस कदम से पिछड़े वर्ग को आबादी के अनुसार  आरक्षण की मांग को एक बार फिर से बल मिल सकता है।

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अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी के आंकड़े जारी करने की मांग लंबे समय से पिछड़े वर्ग के नेताओं की ओर से की जाती रही है। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह, शरद यादव , अखिलेश यादव आदि तमाम ओबीसी नेता इस तरह की मांग अक्सर करते रहे हैं, लेकिन आजतक मोदी सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक क्यों नही किये हैं इसका कोई सटीक जवाब प्रधानमंत्री नही दे पायें हैं।  फिर ये कैसे मान लिया जाये कि लोकसभा चुनाव बीतने के बाद,  2021 की जनगणना मे ओबीसी की गिनती करवायी जायेगी या पिछड़े वर्ग को एकबार फिर सरकार द्वारा छला जायेगा? अगर ओबीसी की गिनती करवा भी दी तो क्या सरकार उसके आंकड़े सार्वजनिक करेगी भी या जातीय जनगणना के आंकड़ों की तरह दबाये बैठी रहेगी?