न्यायपालिका में आरक्षण के लिए अब ” हल्ला बोल- दरवाजा खोल” आंदोलन

नई दिल्ली, न्यायापालिका में दलितों- पिछड़ों  के प्रतिनिधित्व के लिये अब 20 मई से ” हल्ला बोल- दरवाजा खोल” आंदोलन की शुरूआत होने जा रही है. इस आंदोलन को कई राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है.

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न्यायापालिका में दलितों- पिछड़ों का प्रतिनिधित्व नहीं है. जिसके कारण सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट के फैसलों से एसटी-एसटी और ओबीसी के हित प्रभावित हो रहें हैं. हाल ही मे सुप्रीम कोर्ट ने एसटी-एसटी उत्पीड़न कानून को हल्का कर शिकायत पर गिरफ्तारी से रोक लगा दी है. 2 अप्रैल को इसके विरोध मे भारत बंद के बावजूद सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जस का तस है.

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केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि हाल के दिनों में न्यायपालिका के निर्णय से एसटी-एसटी और ओबीसी के हित प्रभावित हुए हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है कि इस तबके के लोग न्यायापालिका में नहीं है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अगर न्यायापालिका में अब भी  दलितों- पिछड़ों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो आगे भी इसी तरह के फैसले होते रहेंगे. इसलिए हमने हल्ला बोल और दरवाजा खोल का नारा दिया है.

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उन्होंने  कहा कि आज देश में पिछड़े-अति पिछड़े और दलित की संख्या अस्सी प्रतिशत से ज्यादा है लेकिन अदालत ने आरक्षण को पचास प्रतिशत पर बांध दिया है और ये इसलिए हो रहा है कि सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट में पिछड़ों-अति पिछड़े ओबीसी या दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं है.  इसीलिये  20 मई से हल्ला बोल-दरवाजा खोल की शुरूआत हो रही है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि देश में संविधान के अनुसार जो आरक्षण की व्यवस्था है वो पूरी तरह से लागू होनी चाहिए.

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