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यूपी विधानसभा चुनाव- जातीय आंकड़ों में उलझे हैं सभी राजनैतिक दल

UP-Vidhaan-Sabha-लखनऊ,  सोशल इंजीनियरिंग या जातीय गणित चुनावों पर पूरी तरह से हावी है। यूपी में संभावित विधानसभा चुनावों को देखते हुए सभी राजनीतिक दल इन जातीय आंकड़ों में उलझे हुए हैं। जातीय समीकरणों को ही ध्यान में रखकर राजनीतिक दल अपने पत्ते फेंटने में लगे हैं। इसके लिए राजनीतिक गठबंधनों का भी ध्यान रखा जा रहा है।

टिकट के दावेदार अपना जातीय गणित समझा राजनीतिक पार्टियों से टिकट की सौदेबाजी करने में लगे हैं। जातीय आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। कास्ट के आधार पर टिकट देने के बाद भी राजनीतिक दलों की मुसीबत कम नहीं हो रही। हर नेता अपनी समझ के हिसाब से आंकड़ें पार्टी नेतृत्व को दे रहा है।

अनुसूचित जाति की वोटों को छोड़कर कोई ऐसा पैमाना नहीं है जो किसी जातीय गणित को फिट साबित कर सकें। प्रदेश में सपा और बसपा को छोड़कर किसी भी पार्टी के अधिकांश टिकट घोषित नहीं है। यह पार्टियां भी उलझे कास्ट फैक्टर के कारण हर रोज टिकट बदल रही है। भाजपा, कांग्रेस, रालोद तो अभी जातीय गणित को समझ ही नहीं पा रही। सही जातीय आंकड़ों की खोज में पार्टियां निजी एजेंसियों से सर्वे भी कराती है। लेकिन यह एजेंसियां भी सही आंकड़ें खोज पाने में असफल रहती है। इस खेल में वह मोटा पैसा बनाने में जरूर कामयाब हो जाती है। इससे सटीक आकलन तो राजनीतिक दलों के पुराने कार्यकर्ता ही कर रहे हैं। लेकिन बदले परिसीमन पर एक बार विधानसभा चुनाव होने के बाद भी जातीय गणित ने राजनीतिक दलों को उलझा दिया है।

2013 के मुज फरनगर दंगों के बाद भी वेस्ट यूपी के सियासी हालात अभी तक बदले नहीं है। इस क्षेत्र के जिलों में आए दिन सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं से माहौल गर्माया हुआ है। राजनीतिक दलों ने इस माहौल को भुनाने की कोशिश भी कर दी हैं। खासकर प्रदेश में सत्तारूढ़ सपा ने वेस्ट यूपी में इसी को ध्यान में रखते हुए टिकट बांटे हैं। हालांकि सपा ने भी बसपा की तर्ज पर अपने टिकट बदले हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा तो सपा के टिकट बदलने का काम भी तेज होगा। बिहार की तर्ज पर जदयू उत्तर प्रदेश में भी सियासी गठबंधन करने की ओर हैं। सपा से संबंध बिगडने के बाद जदयू के लिए यूपी में सबसे ज्यादा मुफीद राष्ट्रीय लोकदल है। दोनों दलों के बीच विलय की बातचीत चल रही हैं, लेकिन रालोद अपने सियासी अस्तित्व को नहीं गंवाना चाहता। इस कारण गठबंधन पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। यूपी में जदयू का ज्यादा सियासी वजूद नहीं होने के बाद भी सपा, बसपा और भाजपा इन गठबंधन पर निगाह रखे हुए हैं। खासकर वेस्ट यूपी में जाट वोटबैंक पर रालोद की पकड़ अभी भी बरकरार है। इससे भाजपा की बेचौनी बढ़ी हुई हैं और इसके लिए उसने अपने जाट नेताओं को वेस्ट यूपी की नब्ज टटोलने का जिम्मा सौंपा हैं। विलय और गठबंधन की बात पर जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व सांसद केसी त्यागी का कहना है कि जदयू-रालोद की बातचीत सकारात्मक स्तर पर चल रही है। जल्दी ही एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।

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