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गुजरात फाइल्स अब हिंदी मे- दंगों मे मोदी और शाह की कारस्तानी, अफसरों की जुबानी

नयी दिल्ली, गुजरात दंगों की हकीकत क्या है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की गुजरात दंगों  मे वास्तव मे क्या भूमिका रही। तत्कालीन अधिकारियों के द्वारा इसकी हकीकत उन्ही के शब्दों मे खोजी पुस्तक ‘गुजरात फाइल्स’ में बयां की गई है।

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पत्रकार राना अयूब की गुजरात दंगों और दूसरे गैर कानूनी कामों पर आधारित खोजी पुस्तक ‘गुजरात फाइल्स’ अपने आप मे अनूठी है। एक वर्ष में इस पुस्तक के 12 भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। अब गुजरात दंगे पर अंग्रेजी में लिखी गयी चर्चित पुस्तक गुजरात फाइल्स के हिन्दी संस्करण का भी विमोचन किया गया है। मोदी और अमित शाह से जुड़े इसके कुछ अंशों को उसी रूप में देने की  कोशिश पुस्तक मे की गई है।

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मुम्बई की पत्रकार राणा अय्यूब द्वारा लिखित इस पुस्तक के हिन्दी संस्करण का दिल्ली के प्रेस क्लब में विमोचन किया गया। गुलमोहर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब का विमोचन हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक एवं समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट, एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह और जानी-मानी अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने किया।

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समारोह में उपस्थित पुस्तक की लेखिका राणा अय्यूब ने इस मौके पर बताया कि किस तरह उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन करके गुजरात दंगे की हकीकत लिखी लेकिन उसे तहलका ही नहीं बल्कि किसी अख़बार या पत्रिका ने छापने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि लेकिन एक साल के भीतर इसके 12 भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं और इस किताब के सम्बन्ध में वह अब तक 500 आयोजनों में शामिल हो चुकी हैं।

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उन्होंने बताया कि इस किताब के लिए आज तक न तो कोई मानहानि का मामला दायर हुआ और न ही पुस्तक को ज़ब्त किया गया। इतना ही नहीं जिन अफसरों का स्टिंग आपरेशन करके उन्होंने गुजरात दंगे के पीछे छिपी हुई बातों का पता लगाया, उन अफसरों ने भी कोई आपत्ति आज तक दर्ज नहीं करायी जिनका वह शुक्रिया अदा करती हैं।

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उन्होंने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की विरोधी नहीं हैं और न ही उनकी किसी से कोई निजी दुश्मनी है। उन्होंने पुस्तक में श्री शाह के बारे में जो कुछ कहा है, वे वही शब्द थे जो उच्चतम न्यायालय ने उनके लिए कहे थे।

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पुस्तक के प्रकाशक एवं कवि अजय सिंह ने कहाकि इस पुस्तक का हिन्दी में प्रकाशन बहुत आवश्यक था क्योंकि इससे दंगे में शामिल रहे लोगों की कारगुजारियां ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचायी जा सकेंगी। समारोह में रवीश कुमार, पंकज बिष्ट और वृंदा ग्रोवर ने भी अपनी बात रखी।

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देखिये, खोजी पुस्तक ‘गुजरात फाइल्स’ के हिन्दी संस्करण के कुछ अंश-

एनकाउंटर में शामिल ज्यादातर अफसर दलित और पिछड़ी जाति से थे। राजनीतिक व्यवस्था ने इनमें से ज्यादातर का पहले इस्तेमाल किया और फिर फेंक दिया।- जी एल सिंघल, पूर्व एटीएस चीफ, गुजरात

मंत्री के इशारे पर सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति की हत्या की गई थी। मंत्री अमित शाह वह कभी भी मानवाधिकारों में विश्वास नहीं करता था। वह हम लोगों को बताया करता था कि ‘मैं मानवाधिकार आयोगों में विश्वास नहीं करता हूं’। अब देखिये, अदालत ने भी उसे जमानत दे दी।   –राजन प्रियदर्शी, पूर्व डायरेक्टर जनरल, एटीएस गुजरात

एनकाउंटर धार्मिक आधार पर कम राजनीतिक ज्यादा होते हैं। अब सोहराबुद्दीन मामले को लीजिए। वो नेताओं के इशारे पर मारा गया था। उसके चलते अमित शाह जेल में हैं।-अशोक नरायन, पूर्व गृहसचिव, गुजरात

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यह शख्स (सीएम) बहुत चालाक है। वो हर चीज जानता है। लेकिन एक निश्चित दूरी बनाए रखता है। इसलिए वह इसमें (सोहराबुद्दीन मामले में) नहीं पकड़ा गया।-अशोक नरायन, पूर्व गृहसचिव, गुजरात

आडवानी के इशारे पर मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया गया था। क्योंकि वो नरेंद्र मोदी के संरक्षक थे। इसलिए उन्हें पाक-साफ साबित करने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल किया गया। मेरा मतलब है कि लोग स्थानीय पुलिस की कहानी पर विश्वास नहीं करेंगे। लेकिन सीबीआई की कहानी पर भरोसा कर लेंगे।- पीसी पांडे, 2002 में पुलिस कमिश्नर, अहमदाबाद

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