Breaking News

जम्मू-कश्मीर से राजस्थान को बिजली आपूर्ति करने से बुनियादी सुविधाएं छीन जाएंगी: महबूबा मुफ्ती

श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने शनिवार को कहा कि किश्तवाड़ में रैटले जलविद्युत परियोजना से राजस्थान को बिजली की आपूर्ति करने से प्रदेश के लोगों से बुनियादी सुविधाएं छीन जाएंगी।

नेशनल हाइड्रोइलैक्ट्रिक पावर काॅरपोरेशन लिमिटेड (एनएचपीसी)और जम्मू-कश्मीर स्टेट पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की संयुक्त उद्यम कंपनी रैटले हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (आरएचपीसीएल) ने बुधवार को राजस्थान ऊर्जा विकास और आईटी सर्विसेज लिमिटेड को बिजली की आपूर्ति के लिए पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) में प्रवेश किया। पीपीए पर जयपुर में हस्ताक्षर किये गये।

समझौते के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में 850 मेगावाट की रैटले जलविद्युत परियोजना राजस्थान को परियोजना के वाणिज्यिक संचालन तिथि (सीओडी) से 40 वर्षों की अवधि के लिए और केंद्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले बिजली आवंटन के अनुसार बिजली प्रदान करेगी।

पीडीपी प्रमुख श्रीमती महबूबा ने इस घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा,’ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर एक गंभीर बिजली संकट का सामना कर रहा है, जो पहले कभी नहीं देखा गया था, हमारे जल विद्युत संसाधनों को अन्य राज्यों को आउटसोर्स किया जा रहा है। एक और निर्णय जो जम्मू-कश्मीर के निवासियों को सामूहिक रूप से दंडित करने के इरादे से लोगों की बुनियादी सुविधाएं छीन लेगा।’

जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) ने शुक्रवार को सरकार से समझौते पर स्थिति साफ करने को कहा और दावा किया कि इससे प्रदेश के लोगों के बीच काफी गलतफहमी पैदा हो गई है।

पार्टी के राज्य प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा कि समझौते से हड़कंप मच गया है। इसके नियम और शर्तें जम्मू-कश्मीर के लिए नुकसानदेह लगती हैं।

उन्होंने कहा कि 40 साल की अवधि के लिए बिजली के उठान के नए समझौते ने संदेह को और बढ़ा दिया है।सरकार को समझौते पर एक ‘श्वेत पत्र’ लाना चाहिए, जिसमें लोगों को इसके अंतर्निहित उद्देश्य के बारे में बताया जाए और यह भी बताया जाए कि इससे जम्मू-कश्मीर को क्या लाभ होगा।’

श्री इमरान ने कहा कि सरकार को सबसे पहले घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध कराने को प्राथमिकता देनी चाहिए थी क्योंकि जम्मू-कश्मीर में गंभीर रूप से महसूस किया जा रहा ऊर्जा संकट अभी खत्म नहीं हुआ है।