झांसी, उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (बुंविवि) में सोमवार को राष्ट्रीय पुस्तक मेले का शुभारंभ किया गया । सात दिनों तक चलने वाले इस मेले में देश भर के 60 से अधिक प्रकाशक हिस्सा लेंगे और एक लाख से अधिक पुस्तकें पाठकों के लिए उपलब्ध होंगी।
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ, प्रज्ञा लिटरेरी क्लब, सृजन क्लब तथा हिंदुस्तानी एकेडमी, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पुस्तक मेला एवं संगोष्ठी का आज भव्य शुभारंभ हुआ। मंडलायुक्त बिमल कुमार दुबे, नालंदा विश्वविद्यालय, बिहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह तथा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश पांडेय द्वारा पुस्तक मेला का शुभारंभ किया गया। अतिथियों द्वारा तमाम स्टालों का अवलोकन किया गया। मेला स्थल पर बने बुंदेली दीर्घा को भी अतिथियों ने देखा।
मुख्य अतिथि बिमल कुमार दुबे ने कहा “ प्राचीन समय में शिक्षा, श्रुति व्यवस्था के अंतर्गत होती थी। गुरु बोलते थे और शिष्य उसे सुनकर ग्रहण करते थे। उसके बाद हस्तलिपियां और फिर पुस्तकों की प्रिंटिंग शुरू हुई। बोलकर फैलाये जाने वाले ज्ञान का लिखकर संग्रहण किया गया। परंतु, आज के समय में मोबाइल और इंटरनेट के कारण पुस्तक पढ़ने में कोई रुचि नहीं लेता है। ज्ञान का माध्यम अध्ययन है, पुस्तकों का अध्ययन। शिक्षक से मिलने वाले ज्ञान के अलावा स्वाध्याय भी महत्वपूर्ण है।” मंडलायुक्त ने अपने कॉलेज के दिनों का उदाहरण देते हुए लाइब्रेरी और पुस्तकों का महत्व समझाया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि नालंदा विश्वविद्यालय, बिहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा “ मैं पहली बार बुंदेलखंड क्षेत्र में आया हूं और यहां आकर अच्छा लगा। आज के दौर में हमें यह जान लेने की आवश्यकता है कि पुस्तकों को पढ़ने के लिए अनुशासन बहुत जरूरी है। यदि आप स्वयं को अनुशासित रख कर नहीं पढ़ते हैं तो आप कुछ भी सीख नहीं पाएंगे। मैं नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ा हूं और नालंदा विश्वविद्यालय ही वो जगह है जहां 90 लाख किताबें वर्षों तक जलती रहीं थीं। आप यह समझिए कि वहां कितना ज्ञान था जो समाप्त हो गया। आज वह किताबें होती तो हम सब के लिए कितनी उपयोगी होती। ज्ञान का सागर होती। जापान, चीन, मंगोलिया, कोरिया जैसे देशों की जो बौद्ध संस्कृति है उन सब की रूपरेखा हमारी पुस्तकों के ट्रांसलेशन पर ही आधारित है। पुस्तकों के बीच में होने से चरित्र का जो निर्माण होता है। वह आभासी ज्ञान (आर्टिफिशल इंटेलिजेन्स) कभी नहीं कर सकता। आर्टिफिशल इंटेलिजेन्स चित्र बना सकता है, चरित्र नहीं। पुस्तकें आपके लिए नए ज्ञान के मार्ग खोलती हैं। पुस्तकों से आपकी मित्रता ही हमारी संस्कृति और राष्ट्र का नया निर्माण करेगी। ”
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.मुकेश पांडेय ने कहा कि इस पुस्तक मेला में अन्य कई एकेडमिक एक्टिविटीज भी की जा रही है। हम अपने बचपन में चित्रों वाली किताब पढ़ते थे। उन किताबों में जो चित्र होते थे उसी के अनुसार हम चरित्र को अपने मन में गढ़ते थे। यहां बात सिर्फ साहित्य की किताबों की नहीं है। आपने रामायण, महाभारत, दुर्गा सप्तशती जैसी पुस्तके भी कभी ना कभी पढ़ी होंगी। आप कभी सफर करते हैं या घर से दूर कहीं अकेले रहते हैं, तब भी यदि आपके साथ किताबें हैं तो आप कभी अकेला महसूस नहीं करेंगे। ज्ञान या तो अनुभव से आता है या फिर पुस्तकों से। पुस्तकें आपकी इमेजिनेशन, अंडरस्टैंडिंग और नॉलेज को बढ़ाती है।
प्रो. पांडेय ने नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति से एक एम ओ यू साइन करने का निवेदन भी किया जिससे कि दोनों विश्वविद्यालयो के छात्र-छात्राओं को और अधिक सुविधाएं प्रदान की जा सकें। अतिथियों का स्वागत हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुन्ना तिवारी तथा आभार कुलसचिव विनय कुमार सिंह ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ.अचला पांडेय द्वारा किया गया।
सांस्कृतिक संध्या में द्रौपदी चीरहरण पर आधारित नाटक, कथक प्रस्तुति तथा नीरज एंड पार्टी ने सबका दिल जीत लिया।
इस अवसर पर डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी, डॉ. बिपिन प्रसाद, नवीन चंद्र पटेल, डॉ. प्रेमलता श्रीवास्तव, डॉ. सुधा दीक्षित, डॉ. शैलेंद्र तिवारी, डॉ. द्यूती मालिनी, डॉ. आशीष दीक्षित, डॉ. सत्येंद्र चौधरी, डॉ. सुनीता वर्मा, डॉ. आशुतोष शर्मा, डॉ. राघवेंद्र, कपिल शर्मा, डॉ. रामनरेश, डॉ. जोगेंद्र, डॉ. पुनीत, गरिमा, रिचा सेंगर, आकांक्षा सिंह, मनीष मंडल, विशाल, अजय तिवारी समेत कई अन्य शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी आदि मौजूद रहे।