इटावा, हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर मानी जाने वाली फ़िल्म ‘मुग़ले आज़म’ को लेकर फिल्म निर्देशक के.आसिफ पर इस कदर जुनून सवार था कि फिल्म के एक दृश्य में मोती गिरने की आवाज को वह असली मोतियों से शूट करना चाहते थे और निर्माता के मना करने पर नाराज होकर उन्होने फिल्म की शूटिंग तक रोक दी थी।
के. आसिफ के जन्म शताब्दी वर्ष के मौके पर उनकी जन्मस्थली इटावा में एक समारोह का आयोजन किया गया था जिसमें वक्ताओं ने गुजरे जमाने के इस मशहूर निर्देशक के काम के प्रति समर्पण को याद किया। इस मौके पर राज्यसभा टीवी के पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर और फिल्मकार राजेश बादल ने मुगल ए आजम की शूटिंग से जुड़ी एक रोचक घटना का जिक्र करते हुये कहा कि जब फिल्म मुगले आजम बन रही थी तो निर्देशक के. आसिफ ने फिल्म के प्रोड्यूसर शापुर जी पालोन जी से कहा कि उन्हें शूटिंग के लिए असली मोती चाहिए क्योंकि वह उस आवाज को सुनाना चाहते हैं जो सच्चे मोतियों के गिरने से होती है।
अधिक खर्च की वजह से उस वक्त शापुर जी इसके लिए तैयार नहीं हुए और दोनों के रिश्ते ऐसे हो गए कि बातचीत भी बंद हो गई। तभी ईद का त्योहार आया। शापुर जी एक बड़े थाल में सोने और चांदी के सिक्के लेकर के. आसिफ के पास गए। इस पर के. आसिफ ने कहा कि असली मोती लाओ, मुझे यह नहीं चाहिए। इसके बाद तराजू के एक पलड़े पर के. आसिफ बैठे और दूसरे पलड़े पर असली मोती तौले गए। जब मोती का वजन के.आसिफ के वजन से अधिक हो गया तब मुगले आजम की शूटिंग दोबारा शुरू हो पाई।
साहित्यकार डॉ. कुश चतुर्वेदी ने कहा कि इटावा में जन्मे कमरुद्दीन आसिफ का बचपन गरीबी में गुजरा लेकिन वह धुन के पक्के थे। पूरी उम्र बेहद सादगी से रहने वाले के. आसिफ ने मुगले आजम के रूप में उस वक्त की सबसे महंगी और सफल फिल्म बनाई। के. आसिफ के नजदीकी परिवार में से एक फजल यूसुफ खान ने दिवंगत निर्देशक के मकान को के.आसिफ स्मारक बनाने का प्रस्ताव रखा जिस पर वहां मौजूद सभी लोगों ने सहमति जताई।
मुख्य अतिथि राजेश बादल ने के.आसिफ के नाम पर फिल्म इंस्टीट्यूट बनाये जाने का भी सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि मध्य भारत में एक अच्छे फिल्म इंस्टीट्यूट की बेहद जरूरत है तो क्यों ना इसके लिए आवाज उठाई जाए ताकि केंद्र व राज्य की सरकारें इसके लिए काम करें। उन्होंने कहा कि इटावा फिल्म का ऐसा केंद्र बने जहां से कई के. आसिफ निकलें।
उन्होंने के. आसिफ से जुड़े।
उन्होंने कहा कि आसिफ कहते थे “ मेरे लिए आत्मा कला है और बाजार शरीर है। आत्मा कभी मरती नहीं है। कला का कोई मोल नहीं होता। ” उन्होंने कहा कि के. आसिफ में कला थी, वह हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। सिर्फ 3-4 फिल्में बना कर ही वह अमर हो गए।
प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक अजित राय ने कहा कि एक-एक घटना को पर्दे पर ऐसे उतारा कि उसकी तपिश या शीतलता को लोगों ने सिनेमाहॉल में बैठकर महसूस किया। उन्होंने कहा कि अनारकली की कहानी का जिक्र इतिहास में नहीं मिलता लेकिन के. आसिफ ने काल्पनिक कहानी और किरदार को ऐसे पेश किया जिसे हर कोई सच मान बैठा। मुगले आजम बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है।
चर्चित फिल्म क्रिटिक मुर्तजा अली खान ने कहा कि के.आसिफ ने असंभव को संभव करके दिखाया। के. आसिफ के 100वे साल पर भारतीय डाक टिकट जारी हो। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक ने कहा कि के. आसिफ ने अपनी फिल्म के जरिये हिन्दू-मुस्लिम एकता और मुहब्बत का पैग़ाम दुनिया को दिया है। उनकी जिंदगी के तमाम पहलुओं को समेटे एक मुकम्मल किताब और दस्तावेजी फिल्म बनना चाहिए।