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बीजेपी को लगा बड़ा झटका, पार्टी में इस मुद्दे को लेकर उठने लगे विरोध के स्वर

लखनऊ, उत्तर प्रदेश मे विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को लगा बड़ा झटका लगा है।  एक अहम मुद्दे पर एकजुट नजर आ रही पार्टी मे अब विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं।

किसानों के आंदोलन को लेकर भारतीय जनता पार्टी में दो फाड़ साफ दिखाई देने लगा है। जहां एक ओर पार्टी के कई नेता तीन कृषि कानूनों  के समर्थन में हैं , वहीं अब विरोध के भी मुखर स्वर साफ सुनाई पड़ने लगें हैं।  सबसे बड़ी समस्या कार्यकर्ताओं और प्रवक्ताओं के लिये है कि वह कौन सा पक्ष जनता के सामने रखें।

तीन कृषि कानूनों  को लेकर किसानों द्वारा किये जा रहे आंदोलन का उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर प्रभाव पड़ना तय है। ऐसी स्थिति में   भारतीय जनता पार्टी चुनावी नफा-नुकसान को लेकर बंटी हुई नजर आ रही है। बीजेपी के कुछ नेताओं को लगता है कि तीन कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन का उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा।

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वहीं दूसरी ओर जैसे जैसे विधानसभा चुनाव पास आरहें हैं और यूपी मे किसान आंदोलन मुखर हो रहा है, बीजेपी के कई नेताओं के अब पसीने छूटने शुरू हो गयें हैं। उनके क्षेत्र में किसान उनकी बात तक सुनन को तैयार नहीं हैं। कहीं कहीं तो अपने ही क्षेत्र मे बीजेपी नेताों को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

पांच सितंबर, 2021 को मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत के बाद तो स्थिति मे भारी परिवर्तन आया है। अब बीजेपी के बड़े नेताओं के भी सुर बदलनें लगें हैं। पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने इस मसले पर किसानों से बातचीत की वकालत की है। वरुण गाधी ने किसानों को ‘अपना ही भाई बंधु’ बताया। कहा कि सरकार को उनसे दोबारा बातचीत करनी चाहिए ताकि सर्वमान्य हल तक पहुंचा जा सके। गांधी ने कार्यक्रम स्थल पर जुटे किसानों की भीड़ से जुड़ा एक वीडियो ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा था, ‘‘मुजफ्फरनगर में विरोध प्रदर्शन के लिये लाखों किसान इकट्ठा हुए। वे हमारे अपने ही हैं। हमें उनके साथ सम्मानजनक तरीके से फिर से बातचीत करनी चाहिए और उनकी पीड़ा समझनी चाहिए। उनके विचार जानने चाहिए और किसी समझौते तक पहुंचने के लिए उनके साथ मिल कर काम करना चाहिए।’’ गांधी की मां मेनका ने भी बेटे के ट्वीट को रीट्वीट किया।

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वहीं, बीजेपी के एक सांसद ने दावा किया है कि चूंकि किसान आंदोलन को जाट आंदोलन के रूप में देखा जाता है, इसलिए इसके खिलाफ गैर-जाट समुदायों का एकीकरण हो सकता है। इन किसानों को संपन्न माना जाता है और राज्य के छोटे किसानों ने अब तक कोई संकेत नहीं दिखाया है कि वे इस आंदोलन का समर्थन करते हैं।

ये तो तय है कि अब तीन कृषि कानूनों  को लेकर किसानों द्वारा किये जा रहे आंदोलन  पर बीजेपी में ही मतभेद है। अगर जल्दी ही पार्टी ने इस पर गंभीर चिंतन नही किया और कोई सर्वमान्य हल नही निकाला तो उसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव मे इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।