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बिहार चुनाव: ये खास बातें दे रहीं हैं चौंकाने वाले परिणामों के इशारे?

नई दिल्ली, बिहार में चुनाव प्रचार अपने चरम पर पहुंच रहा हैं. मुख्यमंत्री नितीश कुमार और राजद युवा नेता तेजस्वी यादव के बीच शुरू हुई इस लड़ाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हो गयें हैं.

 और लेकिन बिहार में क्या कोई हवा है? इसके बारे में निश्चयपूर्वक कुछ भी कहना मुश्किल है. दुर्भाग्य से मीडिया सिर्फ वही देखने को तैयार है जो वह देखना चाहता है. फिर भी हाल में आए चुनाव सर्वेक्षण बता रहे हैं कि एनडीए और महागठबंधन के बीच का फ़ासला कम हो रहा है. जबकि जमीनी रिपोर्ट कुछ और कह रही है. लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा साफ नजर आ रहा है. जो मेनस्ट्रीम मीडिया की नजर से गायब है.

 सरकार के प्रति इस गुस्से को कम करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कूद पड़ें हैं. क्योंकि भारतीय राजनीति में यह प्रधानमंत्री मोदी के जादू का दौर है. ऐसा जादू जब चलता है तो सारे मुद्दे किनारे रह जाते हैं. लेकिन ये जादू बिहार में गायब दिख रहा है. इस लिहाज से यह प्रधानमंत्री के जादू की परीक्षा का भी चुनाव है.

बिहार में हो रही रैलियों में आ रही भीड़ को देखने से स्थिति काफी कुछ साफ़ होती है. तेजस्वी की रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ में एक स्वतःस्फूर्त उत्साह दिखता है, सत्ता-परिवर्तन का जज़्बा दिखता है. वहीं, प्रधानमंत्री की पहले दिन की रैलियों में भी भीड़ में ऐसा उत्साह नहीं दिखा. जिस प्रधानमंत्री के मंच पर आते ही मोदी-मोदी के नारे लगा करते हों, उनके सामने भीड़ उबासी लेती या अन्यमनस्क दिखे तो इसका भी अपना एक इशारा है.

काफी कुछ संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नितीश कुमार के बयानों से मिलने लगें हैं.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय का ये बोलना कि अगर आरजेडी सत्ता में आई तो कश्मीर के आतंकवादियों को पनाह मिलेगी. प्रधानमंत्री ने भी अपनी रैलियों में धारा 370 से लेकर अयोध्या तक के जिक्र से यह कोशिश की कि मूल मुद्दे से चुनाव भटके. मुफ़्त कोरोना का टीका देने का फ़र्ज़ी वादा कर बीजेपी ने विपक्ष को बड़ा मुद्दा थमा दिया है. जिस टीके का वजूद भी नहीं है, जिसके बन जाने के बाद वैसे ही भारत में मुफ़्त बांटे जाने का प्रावधान है, उसे भी बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल कर लिया. ये कहीं न कहीं संकेत कर रहा है कि स्थिति गड़बड़ा गई है.

सबसे बड़ी बात ये है कि तेजस्वी यादव ने चुनाव को मूल मुद्दों रोजगार, शिक्षा और गुड गवर्नेन्स पर केंद्रित कर रखा है उसे धर्म और जाति की राजनीति मे भटकने नही दिया है. तेजस्वी यादव ने 2015 में प्रधानमंत्री का वह वक्तव्य खोज निकाला है जिसमें उन्होंने नीतीश सरकार पर 35 घोटालों का आरोप लगाया था. तेजस्वी दावा कर रहे हैं कि पिछले पांच साल में इनमें 25 घोटाले और जुड़ गए हैं.

जिस तरह से मंत्री और सत्तारूढ़ विधायकों को क्षेत्र में दौड़ाया जा रहा है, मुख्यमंत्री नितीश कुमार की रैली मे लालू यादव जिंदाबाद के नारे लग रहें हैं. उससे लोगों में सरकार के प्रति कितना गुस्सा है ये साफ नजर आ रहा है. वहीं चिराग पासवान के साथ बीजेपी के रहस्यमय रिश्ते की चर्चा गठबंधन के भीतर नीतीश कुमार को बार-बार विचलित कर रही है.

कुल मिलाकर चुनाव एकतरफा होने के दौर में जाता दिखाई दे रहा है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ मुख्यमंत्री नितीश कुमार के लिये खतरनाक संकेत हैं. डॉक्टर राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि सत्ता की रोटी को उलटते-पलटते रहना चाहिए, नहीं तो वह जल जाती है. बिहार में पंद्रह साल से यह रोटी तवे पर चढ़ी हुई है. फिलहाल बिहार की जनता क्या निर्णय लेती है ये आने वाला वक्त ही बतायेगा?