चुनाव में जमानत बचाने के लिए कुल पड़े वैध वोटों का 1/6 या 16.66 फीसदी वोट हासिल करना होता है। इससे कम वोट पाने वाले उम्मीद्वारों की जमानत की राशि चुनाव आयोग वापस नहीं करता है। विधानसभा के चुनाव में सामान्य और ओबीसी कैंडीडेट को 10 हजार रूपये, जबकि एससी/एसटी कैंडीडेट को पांच हजार रूपये जमानत राशि के तौर पर जमा करना पड़ता है.
पहली बार उपचुनाव में बसपा मैदान में उतरी और वह यूपी में भाजपा के बाद नम्बर टू की पार्टी दिखना चाहती थी। लेकिन उसके सपने चूर-चूर हो गये। बसपा सिर्फ 2 सीटों इगलास और जलालपुर में रनर-अप रही, बाकी जगहों पर उसके उम्मीद्वार बुरी तरह पिट गये। उसने न सिर्फ अपनी एक सिटिंग सीट गंवा दी है बल्कि 11 में से 6 सीटों पर बसपा के उम्मीदवार बुरी तरह हारे हैं। वे अपनी जमानत तक नहीं बचा पाये।
रामपुर, लखनऊ कैंट, ज़ैदपुर, गोविंदनगर, गंगोह और प्रतापगढ़ ऐसी ही सीटें हैं, जहां बसपा अपनी जमानत नहीं बचा पायी। जमानत बचाने के लिए कुल पड़े वैध वोटों का 16.66 फीसदी आवश्यक होता है लेकिन, बसपा को रामपुर में 2.14 फीसदी, लखनऊ कैण्ट में 9.64 फीसदी, ज़ैदपुर में 8.21 फीसदी, गोविंद नगर में 4.52 फीसदी, गंगोह में 14.37 फीसदी और प्रतापगढ़ में 12.74 फीसदी वोटों से ही संतोष करना पड़ा.
इस मामले में बसपा का प्रदर्शन कांग्रेस के बराबर आकर खड़ा हो गया है, जिसके 7 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है। 2017 के चुनाव में इन 11 सीटों में से 4 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीद्वार दूसरे नंबर पर थे। इस उपचुनाव में वे महज गंगोह और गोविंदनगर तक सिमट कर रह गये। कांग्रेस ने 11 में से 7 सीटों पर जमानत गंवाई । प्रदेश में कांग्रेस भले ही उपचुनाव में एक भी सीट न हासिल कर सकी हो लेकिन अकेले लड़ने वाली कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी देखी गई है। इस परिणाम से पार्टी में एक आस जगी है।
बीजेपी के लिये भी उपचुनाव के परिणाम चोंकाने वाले रहे। पार्टी तीन सीटें हार गयी लेकिन, उसके किसी भी कैण्डिडेट की जमानत जब्त नहीं हुई है।
इस मामले में सपा के कैंडिडेट 11 में से 8 सीटें हारे हैं, फिर भी वे प्रतापगढ़ को छोड़कर बाकी सभी सातों सीटों पर अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे हैं। 11 सीटों में से प्रतापगढ़ एकलौती ऐसी सीट है, जहां भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) के विजेता राजकुमार पाल के सामने सभी पार्टियां फीकी पड़ गयी हैं। इस सीट पर किसी भी कैंडिडेट की जमानत नहीं बची है।
इस उपचुनाव में घोसी से निर्दलीय सुधाकर सिंह के अलावा किसी भी निर्दलीय उम्मीद्वार की जमानत नहीं बची है. सुधाकर सिंह सपा के कैंडीडेट थे लेकिन. उनका पर्चा खारिज हो गया था, जिसकी वजह से उन्हें निर्दलीय मैदान में उतरना पड़ा था.