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ऐसिड अटैक की शिकार पीड़िताओं की पहचान शीरोज: देश की रियल हीरोज

लखनऊ,  शीरोज हैंगआउट  जो ऐसिड अटैक की शिकार पीड़िताओं  की  पहचान और उनके सम्मानपूर्वक जीवन यापन  के लिए बनाया गया है, जिसके बारे में हम आपको ऐसी कुछ चीजें बताते है जो शायद आपको अभी तक नहीं पता होगी।

जि न्हें समाज ने ठुकराया। जिनकी आवाज दबाने की कोशिश हुई। जिनके सपनों को उड़ान देने से रोका गया पर इन्हें चुप बैठना गवारा नहीं हुआ। अपने इरादों और हौसलों की उड़ान दिखाने के लिए ये फिर से उठ खड़ी हुईं और समाज के लिए मिसाल बन गईं। इन महिलाओं के जिंदगी जीने के तरीके और जज्बे को सभी ने सलाम किया। समाज के लिए प्रेरणा बनी ऐसी ही महिलाओं का कार्यस्थल है, यूपी की राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर मे स्थित  शीरोज हैंगआउट  कैफे।

उत्तर प्रदेश, शीरोज हैंगआउट कैफे की शुरूआत 2014 में आगरा से हुई।ये छाँव फाउनडेशन के द्वारा चलाया जा रहा है।  इस फाउन्डेशन का प्रमुख उद्देश्य लोगों को एसिड अटैकर के प्रति जागरुक करना है, तथा ऐसिड अटैकर का हौसला बढ़ाना है, इसकी दूसरी ब्रांच लखनऊ में स्थित है, इस ब्रांच को 2016 में शुरू किया गया था ।एसिड अटैक सरवाइवर की ओर से संचालित गोमतीनगर के शीरोज हैंगआउट कैफे इस कैफे में 15-16 लड़कियां काम करती है।

इस कैफे में एक लाइब्रेरी बनी हुई है, जिससे लोग बुक पढ़ते-पढ़ते अपनी कॉफी  का आनन्द ले सके इसमें लोगों के पढ़ने के लिए कई प्रकार की बुक रखी गयी है। लाइब्रेरी में बुक को लोगों के द्वारा ही डोनेट कीया जाता है।

इस कैफे में कॉफी के अलावा भी कई तरह की डिसेज मिलती है, जिसको खाने के लिए लोग दूर-दूर से आते है और भरपूर आनंद उठाते है।कुछ लोग यहां पिकनिक के उद्देश्य से भी आते है और कई लोग एसिड अटैकर के बारे में जानकारी लेने के लिए आते है।

इस कैफे में हम एक ऐसिड अटैकर अंंशु राजपूत से मिले जो इसी कैफे में एक वर्कर है उन्होंनें अपने बारे में तथा इस कैफे के बारे में काफी सारी चीजें बताई, इन्होंने बताया कि जो ऐसिड अटैक का केस है वो 12-20 वर्ष की लड़कियों के साथ ये हादसा होता है, जब वह अपने आगे के करियर के बारें में सोच रही होती है और पढ़ रही होती है। जिस समय वह तरह-तरह के सपनें देखती है कोई कल्पना चावला बनने का तो कोई सान्या मिर्जा बनने का, पर ऐसे समय पर कोई आता है और उनके सपनों पर ऐसिड फेंक कर चला जाता है।

उन्होंने बताया कि जब उनके साथ ये हादसा हुआ तो उनके रिश्तेदार और अगल-बगल के लोगों ने उनसे बोलना छोड़ दिया। उनकों खुद से अलग समझने लगें उनके बारे में बुरा-बुरा बोलने लगे लेकिन उस समय उनके माता-पिता ने उनका पूरी तरह से साथ दिया  उन्होंने समझाया अगर तुम हिम्मत हार गई तो और लड़कियों को कैसे प्ररित करोगी। अंशु उस समय पूरी तरह से निराश थी आगे के बारे में सोचने के लिए कुछ भी नहीं बचा था उनके पैरेन्ट्स ने उन्हें समझाया आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। अब वह इस कैफे में वर्क करती है। और यह बात जानकर खुशी हुई की अब वह खुद एक मोटिवेशनल स्पीकर है। जब वो घर जाती है तो लोग उनसे मिलने के लिए उनका इंतजार करते है, उनके साथ फोटो लेते है और उनसे बात करते है।