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चीन के इस कदम से भारत को होगा बड़ा फायदा….

नई दिल्ली, चीन के इस कदम से भारत को  बड़ा फायदा होगा. अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए चीन ने बड़ा कदम उठाते हुए रिजर्व रिक्वायरमेंट रेश्यो में एक फीसदी की कटौती की है. इस फैसले से चीन के बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ जाएगी. लिहाजा बैंक ज्यादा कर्ज़ दे पाएंगे. ऐसे में कंपनियों की स्थिति सुधरेगी. कंपनियां अपनी आमदनी बढ़ा पाएंगी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार से भारत को भी फायदा मिलेगा.

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भारत के सीआरआर की तरह चीन में रिजर्व रिक्वायरमेंट रेश्यो होता है. चीन का सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना  इसे घटाकर बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ा देता है. नई दरें 15 जनवरी से लागू होंगी. इससे पहले अक्टूबर 2018 में भी चीन ने एक फीसदी आरआरआर घटाने का ऐलान किया था. उस समय इस कटौती के बाद बैंक ने चीन की इकॉनमी में 1.2 ट्रिलियन युआन का नकदी डाल दी थी.

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 एसकोर्ट सिक्योरिटी के रिसर्च हेड आसिफ इकाबल ने बताया कि चीन दुनियाभर में बेस मेटल्स का सबसे बड़ा कंज्यूमर है ऐसे में ब्याज दरों में कटौती से बेस मेटल्स की कीमतों को सहारा मिल सकता है. घटी दरों से चीन की इंडस्ट्री को सस्ते में कर्ज मिल सकेगा जिससे मैन्युफैक्चरिंग में तेजी आने की उम्मीद है और बेस मेटल्स यानी कॉपर, निकिल, जिंक, लेड और टिन की खपत बढ़ेगी. इंटरनेशनल मार्केट में दाम बढ़ेंगे. लिहाजा भारतीय कंपनियां भी इसका फायदा उठा सकेंगी.

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आसिफ बताते हैं कि चीन और भारत की मोनेट्री पॉलिसी लगभग एक जैसी ही है. अक्सर देखा गया है कि चीन के ब्याज दरों में कटौती के बाद भारत भी दरों में कटौती कर देता है. लिहाजा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद बढ़ गई है, क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से महंगाई में कमी आई है. आसिफ के मुताबिक, इस फैसले से दुनियाभर के शेयर बाजार में भी तेजी आएगी. साथ ही, अमेरिकी डॉलर पर दबाव बढ़ने से भारतीय रुपये को भी सहारा मिलेगा.

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 केंद्रीय बैंक की ओर से यह फैसला लिए जाने की एक वजह यह भी है कि बैंक सरकारी कर्ज के चलते भी दबे हुए हैं. सरकारी कर्ज 2.58 ट्रिलियन डॉलर हो चुका है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से इंटरेस्ट बढ़ाए जाने से भी चीन पर दबाव है. चीन के प्रॉडक्ट्स के लिए यूरोपियन यूनियन के बाद अमेरिका दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. अमेरिका पाबंदियों के चलते चीन का प्राइवेट सेक्टर में दबाव में है. ऐसे में इस फैसले से मार्केट में अधिक रकम आ सकेगी और निजी क्षेत्र के पास प्रतिस्पर्धा में बने रहने की क्षमता पैदा हो सकेगी.