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जानें कीटनाशकों के उपयोग से सेहत पर होने वाले प्रभाव से जुड़ी भ्रांतियां और सच्चाई

नई दिल्ली,  कृषि रसायनों व कीटनाशकों को आमतौर पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है, फसलों की सुरक्षा और उपज बढ़ाने के लिए इनकी जरूरत होती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि क्या ये रसायन सर्वथा हानिकारक है या इसके सही उपयोग नहीं किए जाने से इसके हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं।

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135 करोड़ लोगों की भूख मिटाने जैसे बड़े काम के लिये, भारत में लगातार घट रही कृषियोग्य भूमि से अधिक उपज प्राप्त करने का एकमात्र तरीका यह रसायन हैं। इन उत्पादों के सुरक्षित और सही उपयोग से फसल की हानि नहीं होती है और खाद्य, पोषण और स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है। आइये अग्रणी कृषि रसायन कंपनी धानुका एग्रीटेक लिमिटेड के सहयोग से कीटनाशकों से सम्बंधित कुछ आम भ्रांतियों पर नजर डालते हैं:

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जिस प्रकार फार्मास्युटिकल्स मानव स्वास्थ्य के लिए होते हैं, उसी तरह फसल की रक्षा करने वाले रसायन पौधों के स्वास्थ्य के लिए होते हैं।

1 कीटनाशक उत्पादनशीलता बढ़ाने का महज शाॅर्टकट हैं- यह भ्रांति व्यापक आधार पर फैली है। कीटनाशक फसलों के स्वास्थ्य के संरक्षण में एक आवश्यक समाधान के तौर पर जाने जाते हैं। हमारी कृषिभूमि पर करीब 40,000 प्रकार के कीट, खरपतवार बिमारीयाँ पाई जाती हंै, जो प्रतिवर्ष लगभग 11 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के कृषि उत्पाद को नष्ट कर देती है। कीटनाशक फसल के स्वास्थ्य को सुधारने और उसे इन कीटों, खरपतवार, फफूंद, बैक्टीरिया, वायरस तथा सूक्ष्मजीवों से बचाने के लिये आवश्यक होते हैं।

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2 भारत में कृषिरसायनों का उपयोग सबसे अधिक होता है- टाटा स्टैªटेजिक, एफआईसीसीआई 2016 के एक अध्ययन/विश्लेषण के अनुसार, भारत में कीटनाशकों की खपत सबसे कम में से है, जहाँ प्रति हेक्टैयर खपत केवल 0.6 कि.ग्रा. है, जबकि अमेरिका में यह खपत 5-7 कि.ग्रा. प्रति हेक्टैयर और जापान में 11-12 कि.ग्रा. प्रति हेक्टैयर है। भारत में पंजीकृत कीटनाशकों की संख्या कई अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। इनका उपयोग बेहद चक्रीय है और कुछ ही राज्यों में तथा कुछ फसलों तक ही सीमित है, जोकि स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता की फसल के लिए जरूरी है। भारत में दुनिया के कीटनाशक उपयोग का महज 2 प्रतिशत उपयोग होता है जबकी यहां दुनिया के खाद्य का 16 प्रतिशत से अधिक उत्पादन किया जाता है।

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3 कीटनाशकों के अधिक उपयोग से कैंसर और जन्मजात विकृति हो सकती है- सबसे आम भ्रांति, जो सच नहीं है। भारत में उपयोग किये जाने वाले कृषिरसायनों का परीक्षण वैधानिक विनियमन के अंतर्गत होता है। एक कठोर पंजीकरण प्रक्रिया में हानिकारक तत्वों/ सुरक्षा मापदंडों का मूल्यांकन होता है, जिसमें कैंसर और प्रजनन सम्बंधी प्रभाव भी आंका जाता है। आज उपयोग किये जा रहे कीटनाशक कार्सिनोजेनिक अथवा टेराटोजेनिक नहीं हैं जोकि कैंसर या जन्मजात त्रुटियों का कारण बन सकते हैं। डब्लूएचओ के अनुसार, कोई भी कीटनाशक निर्णायक रूप से कार्सिनोजेनिक के तौर पर पंजीकृत नहीं है जबकि शराब, तंबाकू, लाल मांस आदि का इनमें उल्लेख किया गया है। हमारे देश में एक लाख की आबादी पर कैंसर के लगभग 166 मामले हैं। जबकि सिंगापुर जैसे देश में जहां बमुश्किल ही कोई कीटनाशक इस्तेमाल किया जाता है, एक लाख की आबादी पर कैंसर के लगभग 454 मामले हैं।

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4 आॅर्गेनिक खेती स्थायी और स्वस्थ प्रकृति की होती है- कृषि से सम्बंधित सबसे बड़ी आधुनिक भ्रांतियों में से एक यह है कि आॅर्गेनिक खेती स्थायी प्रकृति की होती है। हालांकि आॅर्गेनिक तरीके से उगाई जाने वाली फसलों में भी कुछ प्रदूषक होते हैं, वे पूरी तरह शुद्ध नहीं होते हैं। आॅर्गेनिक खेती बड़े पैमाने पर नहीं हो सकती। पशुओं से प्राप्त गोबर या खाद आमतौर पर आॅर्गेनिक खेती में प्रयुक्त होती है, जो दुर्लभ वस्तु बन चुकी है, क्योंकि कृषि के लिये उपयोगी पशुओं की संख्या कम हुई है।

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5 हमारे भोजन की सुरक्षा – कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आॅल इंडिया रिसाइड्यू नेटवर्क ने 2012-18 के बीच 1,21,944 नमूनों का परीक्षण किया है और सिर्फ 2.04 प्रतिशत सैंपल्स में रेसिड्यू एमआरएल (मिनिमम रेसिड्यू लिमिट) से ऊपर पाये गये हैं।

रिपोर्ट-आभा यादव

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