वैज्ञानिक शोध- समलैंगिकता आनुवांशिक, अंतत: विलुप्त हो जाएगी?

नयी दिल्ली,  क्या समलैंगिकता अंतत: विलुप्त हो जाएगी? नए साक्ष्य से संकेत मिलते हैं कि समलैंगिक व्यवहार मुख्यत: आनुवांशिक प्रभावों से नियंत्रित होते हैं और समलैंगिक लोग विपरीतलिंगियों की तुलना में काफी कम प्रजनन करते हैं।

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वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं कि समलैंगिकता ऐसा व्यवहार है जो जैविक या आनुवंशिक प्रभावों के कारण पैदा होती है। इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ पडोवा में विकास मनोविज्ञान की प्रोफेसर आंद्रिया कैम्पेरियो सियानी केअनुसार, ‘‘ चूंकि समलैंगिक विपरीत लिंगियों की तुलना में बहुत कम प्रजनन करते हैं, इसलिए इस प्रवृति को बढ़ावा देने वाली जीन तेजी से विलुप्त हो जानी चाहिए।’’

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जेएनसीएएसआर के एवोल्यूशनरी एंड ऑर्गेनिज्मल बायोलॉजी यूनिट की असोसिएट प्रोफेसर टी एन सी विद्या के मुताबिक, समलैंगिक पुरुषों में जीन के कुछ प्रकार बहुत सामान्य हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक मैं जानती हूं, यह साफ नहीं है कि समलैंगिकता किस हद तक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाने वाली है।’’

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विद्या ने कहा, ‘‘समलैंगिकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न प्रकार के जीन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं कि नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्हें प्रजनन का मौका मिलता है कि नहीं। यदि वे खुद प्रजनन नहीं भी करते हैं तो जीन के वे प्रकार दूसरी पीढ़ियों में जा सकते हैं, बशर्ते उनके तरह की जीन से लैस उनके रिश्तेदार प्रजनन करें।’’

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वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि समलैंगिक व्यवहार सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है बल्कि 500 से ज्यादा गैर-मानव जातियों में भी यह पाया गया है। इनमें चिम्पैंजी और पेंग्विन भी शामिल हैं।ऐसे में दुनिया भर के वैज्ञानिक इस सवाल पर मंथन कर रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने हाल में अपने फैसले में समलैंगिक वयस्कों द्वारा आपसी सहमति से बनाए गए समलिंगी यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया गया है।

 

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