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प्राइवेट स्कूलों को भी मात दे रहा यूपी की यह सरकारी विद्यालय…

नई दिल्ली, सरकारी स्कूल का नाम आते ही एक खंडहरनुमा स्कूल, गायब शिक्षक, थोड़े से गांव के मैले कुचैले बच्चे, बैठने के लिए कुछ के पास टाट पट्टी, स्टेशनरी के नाम पर फटी पुरानी किताबें और लगभग शून्य पढ़ाई का ख्याल आता है. लेकिन यही सरकारी स्कूल कमाल कर सकते हैं. प्राइमरी शिक्षा से वे बच्चों को आगे की राह दिखा सकते हैं.

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यूपी (Uttar Pradesh) के बांदा (Banda) में एक बेहद पिछड़े गांव में एक ऐसा सरकारी स्कूल है जो प्राइवेट स्कूलों को भी मात दे रहा है. गांव के कुछ सभ्रांत लोग और शिक्षकों की मेहनत से ये स्कूल इन दिनों सुर्खियों में है. इतना ही नहीं इस स्कूल के सामने तमाम प्राइवेट स्कूल भी बौने नजर आयेंगे.

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बांदा के बेहद पिछड़े इलाके में बने इस हाईटेक स्कूल में हर आधुनिक चीज मौजूद है. यहां सीसीटीवी कैमरे से हर व्यवस्था पर नजर रखी जाती है. कम्प्यूटर से लेकर प्रोजेक्टर तक… यहां हर एक ज़रूरी चीज मौजूद है. बता दें कनवारा, बांदा जनपद के पिछड़े क्षेत्र का छोटा सा गांव हैं, जहां के कन्या पूर्व माध्यमिक स्कूल के अन्दर दाखिल होते ही आप चकित रह जाएंगे क्योंकि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में बना यह स्कूल, बड़े शहरों के किसी प्राइवेट स्कूल से किसी भी मामले में कम नहीं दिखाई देता है.

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यहां पर बच्चों की पढ़ाई और स्कूल की साफ-सफाई से लेकर खेल-कूद और खाना-पीना, सभी की बहुत ही उत्तम व्यवस्थाएं मौजूद हैं. जिसकी निगरानी के लिए स्कूल में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं. जिस पर हर समय स्कूल के प्रधानाचार्य आशुतोष त्रिपाठी की नजर रहती है. यहां पर छात्राओं को पढ़ाई के साथ-साथ कम्प्यूटर और प्रयोगशाला में विज्ञान विषय से सम्बंधित प्रशिक्षण भी कराए जाते हैं. साथ ही समय-समय पर प्रतियोगी परीक्षा भी आयोजित होती है और अच्छा प्रदर्शन करने वाली छात्राओं को सम्मानित भी किया जाता है.

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इस स्कूल में एक छोटा सा पुस्तकालय भी है. इसके अलावा छात्राओं के मनोरंजन के लिए टीवी की भी व्यवस्था है, जिस पर हर शनिवार को छात्राओं को अच्छी व शिक्षाप्रद फिल्में भी दिखाई जाती हैं. छात्राओं का कहना है कि ये सारी व्यवस्थाएं उन्हें उनके टीचर और विद्यालय के प्रधानाचार्य आशुतोष त्रिपाठी की वजह से हासिल हो सकी हैं और अब उन्हें अपने घर से ज्यादा स्कूल में अच्छा लगता है.

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ऐसे में प्रधानाचार्य का कहना है कि वो चाहते थे कि इस स्कूल के बच्चों को भी प्राइवेट स्कूलों की तरह से आधुनिक तरीके से शिक्षित किया जाए इसके लिए उन्होंने सामाजिक सहभागिता और खुद से धन एकत्रित कर बच्चों के लिए सारे संसाधन जुटाने शुरू किए और इसका परिणाम यह हुआ कि आज यह स्कूल बांदा जिले के सरकारी स्कूलों के लिए एक नजीर बन चुका है. इसमें पढ़ने वाली छात्राओं की सोच और बौद्धिक स्तर पर जबरदस्त बदलाव देखने को मिल रहा है.

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