नई दिल्ली ,सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की इजाजत दे दी है। । कोर्ट ने साफ कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। आज अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है। यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है। उम्र के आधार पर मंदिर में प्रवेश से रोकना धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है।’
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्त हिंदू हैं, ऐसे में एक अलग धार्मिक संप्रदाय न बनाएं। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुछेद 26 के तहत प्रवेश पर बैन सही नहीं है। संविधान पूजा में भेदभाव नहीं करता है। माना जा रहा है कि इस जजमेंट का व्यापक असर होगा। उधर, त्रावणकोर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कहा है कि दूसरे धार्मिक प्रमुखों से समर्थन मिलने के बाद वह इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा – पांच जज बेंच में शामिल थे। हालांंकि यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है। आपको बता दें कि शीर्ष कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर अब तक रोक थी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने कहा था कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन ठीक उसी तरह है, जैसे दलितों के साथ छुआछूत का मामला। कोर्ट सलाहकार ने कहा कि छुआछूत के खिलाफ जो अधिकार हैं, उसमें अपवित्रता भी शामिल हैं। अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वे मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है।