जानिये क्या है श्रीदेवी की जान लेने वाला कार्डियाक अरेस्ट, क्या अंतर है हार्ट अटैक से
February 25, 2018
नयी दिल्ली , अभिनेत्री श्रीदेवी की अचानक मौत से पूरा देश सदमे में है और इसीके साथ लोगों की जेहन में एक ही सवाल उठ रहा है कि आखिर यह कार्डियाक अरेस्ट अथवा हार्ट अटैक दो चीजें अगल-अलग कैसे हैं और क्या कार्डियाक अरेस्ट से बचाव संभव है?
जानेमाने कार्डोयोलाॅजिस्ट एवं तीन राष्ट्रपतियों के पूर्व निजी चिकित्सक पद्मश्री प्रोफेसर (डॉ़ ) एम वली ने आज कहा कि श्रीदेवी के कार्डियाक अरेस्ट के बहुत से कारण हो सकते हैं। प्रोफेसर वली ने कहा,“हमें पूरी तरह विश्वास है कि स्वास्थ्य और रूप रंग के प्रति बेहद जागरूक इस अपूर्व सुंदरी ने अपनी मेडिकल जांच में काेई काेर-कसर नहीं छोड़ी होगी, लेकिन कार्डियाक अरेस्ट अथवा अचानक ह्रदय गति का रूक जाना दिल का दौरा पड़ने से थोड़ी अलग स्थिति होने के बावजूद उसके कारणों से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है। इसमें चिंता भी बहुत बड़ा करण है जो आज इंसान के साथ ‘सांस’ की तरफ चिपकी हुयी है।
उन्होंने कहा ,“ दिल का दौरा पड़ने वाले सभी कारणों को समेटने के साथ-साथ कार्डियाक अरेस्ट एक ऐसी अवस्था है जिसमें लोगों की जान शायद ही बचती है। इसमें दिल चलते-चलते अचानक रूक जाता है और मौत हो हाेती है। दिल की धड़कन की गति 70 से लेकर 120 या कभी 130 तक होती है और अगर यह 220 ,250 अथवा 300 हो गयी तो दिल की धड़कन की लय गड़बड़ हो जाती है और वह बंद हो जाती है। आप इसे इस तरह समझें कि आपने घोड़े को बहुत तेज दौड़ाया ,चाबुक मार-मार कर दौड़ाया लेकिन एक अवस्था होगी कि घोड़ा गिर जायेगा और घोड़े का गिरना कार्डियाक अरेस्ट है।”
उन्होंने कहा कि कार्डियाक अरेस्ट की स्थिति आने से पहले के इसके अलार्म को पहचाना ही इससे सुरक्षित रहने का एकमात्र रास्ता है। छाती में दर्द,थकान, सांस फूलना, दिल की धड़कन का तेज होना, बेचैनी और दिल घबड़ाना बेहद महत्वपूर्ण अलार्म हैं। अगर हम इन्हें नजरअंदाज करते हैं और महत्वपूर्ण जांच नहीं करवाते हैं अथवा ठीक से इसका डायग्नोसिस नहीं होता तो दिल में खून का थक्का जम जाता है अथवा धड़कन बहुत तेज हो जाती है जो कार्डियाक अरेस्ट के कारण बनते हैं।
आर वेंकट रमण,डॉ़ शंकर दयाल शर्मा और प्रणव मुखर्जी के निजी सचिव रहे प्रोफसर वली ने कहा कि कार्डियाक अरेस्ट में दिल की बीमारियां तो कारण हैं ही ,बायीं धमनी में ब्लॉकेज भी इसका महत्वपूर्ण कारक होता है। उन्होंने कहा, “यह कहावत बेहद सच है कि चिंता ,चिता के समान है। चिंता से शरीर में एड्रेनलिन नाम के हार्मोन का रिसाव होता है जिससे कार्डियाक अरेस्ट होता है।”
उन्होंने कहा कि 30 की उम्र के बाद से हमें हर साल दिल से संबंधित सभी जांच कराने के अलावा जीवनशैली पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है। बढ़ती उम्र के रूक जाने के बाद जरूरत के अनुसार ही चर्बी का इस्तेमाल फायदेमंद है अन्यथा चर्बी दिल की धमनियों में जमने लगती है। लिपिड प्रोफाइल,इकोग्राम,ईसीजी और सीटी एंजियोग्राफी जैसी जांच करवाना आवश्यक है। आज की भागती जिंदगी में दिल के वाल्व ,होल्टर मॉनिटिंग, रक्तचाप और दिल की मांसपेशियों की जांच करवाना बेहद आवश्यक हैं। उन्होंने कहा,“ कभी कभी आपने देखा होगा कि दौड़ते-दौड़ते कोई खिलाड़ी गिर गया और वह कार्डियाक अरेस्ट की चपेट में आ गया। इसका भी कई तरह की जांचों से पहले से पता किया जा सकता है। इसमें खिलाड़ी की मांसपेशियां काफी सुदृढ़ हो जाती हैं जो कार्डियाक अरेस्ट का कारण बनती हैं।”
जेरियाट्रिक्स (जरारोग)चिकित्सा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रोफेसर वली ने कहा कि जब हम चिंता में होते हैं तो हमारे शरीर में एड्रेनलिन हार्मोन का रिसाव होता है जिससे दिल की धड़कन तेजी से बढ़ जाती है और एेसे में कार्डियाक अरेस्ट होता है। अधिक उतेजना उच्च रक्तचाप ,ध्रूमपान,सदमा,अवसाद एवं दुखी रहने पर भी इस हार्मोन का रिसाव हाेता है। उन्होंने कहा कि अगर हम आवश्यक जांच और जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव नहीं लाते हैं तो इसका मतलब है ,हम ‘बेफिक्रे’ कार्डियाक अरेस्ट अथवा दिल के दौरे को आमंत्रित कर रहे हैं।