लखनऊ, प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अपनी नई पारी खेलने के लिये पूरी तरह तैयार हैं। राजा भैया 2019 के लोकसभा चुनाव मे अपने राजनीतिक दल से उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाएंगे।
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रघुराज प्रताप ने लोकसभा चुनाव से पहले अपने राजनीतिक दल के गठन का निर्णय लिया है। राजा भैया आगामी 30 नवंबर को अपनी नई राजनीतिक पार्टी ने गठन का ऐलान कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, रघुराज प्रताप सिंह ने नई पार्टी का नाम ‘जनसत्ता’ रखने का फैसला किया है।
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सूत्रों के अनुसार, राजा भैया आगामी 30 नवंबर को एक बड़े समारोह में अपनी नई पार्टी का ऐलान करेंगे। यह तारीख इसलिए भी चुनी गई है, क्योंकि राजा भैया 30 नवंबर को अपने राजनीतिक जीवन के 25 साल पूरे करने जा रहे हैं। 30 नवम्बर को लखनऊ के जनेश्वर पार्क में राजा भैया रैली कर अपनी नई पार्टी के पदाधिकारियों की औपचारिक घोषणा कर सकते हैं।
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राजा भैया के राजनीतिक दल के गठन की चर्चा तब से शुरू हुई है, जब से प्रतापगढ़ और आसपास के जिलों में उनके सर्वे वाले पोस्टर लगाए गए थे। पोस्टर प्रतापगढ़ ग्राम प्रधानसंघ की ओर से लगाए गए थे। इसमें लिखा गया था कि क्या राजा भैया को अब नई सियासी पार्टी बना लेनी चाहिए? इस पर मिले सकारात्मक जवाब के बाद ही राजा भैया ने अपने नजदीकी लोगों से इसे लेकर मंथन शुरू किया और अब तमाम चर्चाओं के बाद दल का नाम भी तय किया गया है।
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राजनैतिक सफर-
26 साल की उम्र में पहली बार विधायक बनने वाले राजा भैया 1993 से ही प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से निर्वाचित होते रहे हैं। यूपी के भदरी राजघराने से ताल्लुक रखने वाले रघुराज प्रताप सिंह अब तक निर्दलीय विधायक के रूप में बीजेपी और समाजवादी पार्टी को समर्थन देते रहे हैं।
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2002 में बसपा सरकार में विधायक पूरन सिंह बुंदेला को धमकी देने के मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा था।
बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर पोटा लगा दिया था। करीब 18 महीने वह जेल में रहे। 2003 में मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के बाद राजा भैया के ऊपर से पोटा हटा लिया और उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया, तब से वह लगातार सपा के साथ थे।
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अखिलेश सरकार में भी वह मंत्री बने रहे। इस बीच कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या में नाम आने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। लेकिन राज्यसभा चुनाव में मायावती के उम्मीदवार को सपा का समर्थन मिलने के बाद राजा भैया ने क्रॉस वोटिंग की, जिसके बाद से सपा और राजा भैय्या के रिश्तों में खटास आ गई। इस बीच उनकी नजदीकियां बीजेपी नेताओं से भी रही, लेकिन वे योगी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो सके।