बिहार चुनाव में मिली करारी हार पर तंज कसते हुये शिवसेना ने कहा है कि राजनीति में ‘धूर्तता’ हमेशा काम नहीं आती और अगर वादे पूरे नहीं किए जाते तो आम आदमी तो जवाब देगा ही। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में छपे संपादकीय में कहा गया है कि एक आम आदमी के छोटे-छोटे सपने होते हैं। महंगाई पर काबू हो, उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके, उसके सिर पर छत हो और सुरक्षा हो। लेकिन लोगों को अभी तक क्या मिला है? संपादकीय में कहा गया है, महंगाई पर काबू नहीं पाया जा रहा है और व्यापारी अवैध जमाखोरी कर रहे हैं जिसके कारण खाद्यान्न की कमी की समस्या पैदा हो रही है।
‘सामना’ में छपे संपादकीय में कहा गया है कि कई बार एक लहर आती है और चली जाती है। एक बार यह चली जाती है तो फिर लहर का निशान भी नहीं दिखता। यह सच है कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में भारी जीत मिली लेकिन उस जीत का श्रेय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के कमजोर और अप्रभावी नेतृत्व को जाता है। शिवसेना ने कहा है कि राजनीतिक अखाड़े में कोई मजबूत ‘पहलवान’ नहीं था इसलिए वह (भाजपा) ‘बाहुबली’ के रूप में उभरकर आई। शिवसेना ने दूसरों को अहं भावना छोड़ने की सलाह देने वाले भाजपा के नेताओं का मजाक भी बनाया। भाजपा पर निशाना साधते हुए शिवसेना ने कटाक्ष किया और कहा कि उनके नेता ‘महान’ हैं और ‘कोई गलती नहीं कर सकते’..वे जो कुछ भी कहते हैं, उसे सच माना जाना चाहिए। हालांकि संपादकीय में यह भी कहा गया कि ‘राजनीति में, धूर्तता हमेशा काम नहीं आती।’ कई गैर-राजग दलों ने बिहार चुनावों में जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन को मिली शानदार जीत की सराहना करते हुए इसे ‘सिद्धांतों की जीत’ और भाजपा के ‘अहंकार’ की हार करार दिया है। संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद को सलाह दी है कि वे बिहार चुनावों में जीत मिलने के बाद अपना अहं छोड़़ दें। भाजपा नेताओं को दूसरों को अहं के बारे में सलाह देते हुए देखना बहुत हास्यास्पद है। लेकिन राजनीति में और विशेषकर चुनाव के समय ऐसी हास्यास्पद चीजें अक्सर होती रहती हैं।’ केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों में सहयोगी दल शिवसेना ने कहा कि किसी के पास भी लगातार चुनाव जीतते रहने का कोई फार्मूला नहीं था। पार्टी ने आगे कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत नहीं हासिल कर सकी। संपादकीय में दावा किया गया कि भाजपा जीत हासिल करने के लिए ‘व्यापक धन बल’ का पूरा इस्तेमाल करने के बावजूद बहुमत नहीं ला पाई।