Breaking News

राजा भैया को सबक सिखाने अखिलेश यादव ने उतारा इस यादव को, क्यों है नाराजगी ?

लखनऊ, पिछले ढाई दशक से प्रतापगढ़ की सियासत को अपने हिसाब से चला रहे कुंडा विधायक राजा भैया के सामने इस बार अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है। राजा भैया को यह चुनौती सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दी है।

दरअसल, अखिलेश यादव के साथ राजा भैया के रिश्ते खराब होने की शुरूआत लोकसभा चुनाव 2019 में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर शुरू हुई थी। समाजवादी पार्टी के बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन के कारण राजा भैया अखिलेश यादव से नाराज हो गये थे।  राज्यसभा चुनाव 2019 के दौरान  अखिलेश यादव चाहते थे कि राजा भैया गठबंधन के तहत राज्यसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को वोट दें। लेकिन, राजा भैया ने अखिलेश यादव की बात न मानते हुये मायावती के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी को वोट दे दिया। फिर, राजा भैय्या की भाजपा से  नजदीकी बढ़ने लगी ।

सपा ने जारी की उम्मीदवारों की एक और लिस्ट, जानिए कौन किस सीट से लड़ रहा चुनाव

 बात यहीं पर नहीं रूकी, इसके बाद प्रतापगढ़ के सपा जिलाध्यक्ष छविनाथ यादव को काफी समय से परेशान किया गया। उन्हें कई बार जेल भेजा गया और अभी फिर दिवाली से एक दिन पहले जेल भेज दिया गया। पिछले कुछ महीनों से छविनाथ जिला कारागार में निरुद्ध हैं। आरोप है कि उन्हें राजनैतिक दुराग्रह में फंसाकर जेल भेजा गया है। प्रतापगढ़-कौशांबी में दलितों में अच्छी पैठ रखने वाले वरिष्ठ सपा नेता इंद्रजीत सरोज के कार्यक्रमों में भी बाधा पहुंचाई गई। लोकसभा चुनाव के दौरान इंद्रजीत सरोज के कई कार्यक्रम कुंडा और बाबागंज क्षेत्र में नहीं होने दिए गए। समाजवादी पार्टी का मानना है कि इन सब के पीछे राजा भैया की भूमिका है।

अखिलेश यादव का मोदी योगी पर सबसे बड़ा हमला, कहा- इस जिले को बनायें यूपी की राजधानी

अब, विधान सभा चुनाव की घोषणा होते ही राजा भैया को अपनी सीट की चिंता सताने लगी। दरअसल, राजा भैया के कुंडा और बाबागंज क्षेत्र में यादव मतदाताओं का दबदबा है। राजा भैया अबतक यादव, पासी, मुस्लिम और ठाकुर वोटरों के सहारे ही जीततें आयें हैं। राजा भैया ने अपनी पार्टी जनसत्ता दल से 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की ,  लेकिन फिर क्षेत्र में अपनी कमजोर राजनैतिक स्थिति का ज्ञान होते ही उन्होने जयंत चौधरी, कृष्णा पटेल, ओम प्रकाश राजभर जैसे नेताओं की तरह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल होने की कोशिश शुरू कर दी। पिछले दिनों सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के मौके पर राजा भैया उनसे मुलाकात करने पहुंचे थे।

लेकिन अखिलेश यादव ने भी राजा भैया को सियासी सबक सिखाने की तैयारी कर ली। उन्होने पहले कुंडा नगर पंचायत के चुनाव में गुलशन यादव से राजा भैया के समर्थक को सियासी मात दिलाई। फिर अखिलेश यादव ने गुलशन यादव के छोटे भाई छविनाथ यादव को प्रतापगढ़ में समाजवादी पार्टी का जिलाध्यक्ष बनाया।   वहीं, कुंडा में सपा की साइकिल दौड़ाने का जिम्मा दलित नेता इंद्रजीत सरोज  को सौंप कर राजा भैया को कुंडा में ही घेरकर बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।  जिससे राजा भैया के लिये दलित और ओबीसी वोट का खतरा बढ़ गया।  यही वजह है कि प्रतापगढ़ की जमीन पर राजा भैया को अखिलेश ने पहचानने से साफ इनकार कर दिया। अखिलेश यादव अपने चुनावी अभियान को धार देने 28 नवंबर 2021 को प्रतापगढ़ गये थे। उनके साथ पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज भी थे। यहां जनसभा के बाद पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आखिर सपा सरकार में मंत्री रहे कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से इतनी नाराजगी क्यों है? इस पर अखिलेश यादव का जवाब था- ‘कौन हैं राजा भैया… ये कौन हैं?’ जबकि यूपी में अखिलेश सरकार के दौरान राजा भैया उनकी कैबिनेट का अहम हिस्सा हुआ करते थे।

अब समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए 39 उम्‍मीदवारों की नई लिस्‍ट जारी कर रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के खिलाफ कुंडा से गुलशन यादव को खड़ा कर दिया है। रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ सपा अभी तक उम्‍मीदवार नहीं खड़ा करती थी। राजा भैया 1993 से कुंडा विधानसभा सीट से लगातार निर्दलीय विधायक हैं। वहीं, बीजेपी ने भी राजा भैया के विरोधी शिव प्रकाश मिश्र सेनानी और पूर्व सांसद रत्ना सिंह को अपने खेमे में मिला लिया है। अब, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में राजा भैया को न तो सपा का समर्थन होगा और न ही बीजेपी का वॉकओवर मिल रहा है।

राजा भैया को ठाकुर नेता के तौर पर पूरा प्रदेश जानता है। राजा भैया साल 1993 से लगातार निर्दलीय विधायक चुने जाते आ रहे हैं और सपा और बीजेपी के सहयोग से मंत्री बनते रहे हैं। सूबे में वह बीजेपी के कल्याण सिंह से लेकर राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में मंत्री रहे तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री काल में सत्ता में बन रहे। लेकिन, इस बार उनकी सियासी राह अखिलेश यादव ने कठिन कर दी है।