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नफरत भरे भाषण देने के मामले में हाईकोर्ट सख्त, दिये ये निर्देश

नयी दिल्ली, अधिकारियों को राजधानी में 1984 के सिख विरोधी दंगों की पुनरावृत्ति नहीं होने देने के लिए आगाह करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कपिल मिश्रा और भाजपा के अन्य नेताओं के खिलाफ कथित नफरत भरे भाषण देने के मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं किये जाने पर निराशा जताई। अदालत ने पुलिस आयुक्त से इस मामले में गुरुवार तक सोच-विचारकर फैसला करने को कहा।

उत्तर पूर्व दिल्ली में रविवार को भड़के सांप्रदायिक दंगों को रोक पाने में दिल्ली पुलिस की कथित नाकामी पर नाराजगी जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने पुलिस को पेशेवेर तरीके से काम नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया। दंगों में कम से कम 24 लोग मारे जा चुके हैं और करीब 200 लोग घायल हो गये।

शीर्ष अदालत ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को हिंसा भड़काने वालों पर रोकथाम नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उन्हें किसी की मंजूरी का इंतजार किये बिना कानून के अनुसार काम करना चाहिए। न्यायमूर्ति एस एम कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा, ‘‘अगर कोई भड़काऊ बयान देता है तो पुलिस को कार्रवाई करनी होगी।’’

उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ ने कहा कि जब पुलिस आगजनी, लूटपाट, पथराव समेत घटनाओं के सिलसिले में 11 प्राथमिकी दर्ज कर सकती है, तो उसने भाजपा के तीन नेताओं-अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के कथित घृणा वाले भाषणों के सिलसिले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए तत्परता क्यों नहीं दिखाई। ठाकुर और वर्मा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भड़काऊ भाषण दिये थे।

पीठ ने कहा, ‘‘इन मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने की बात आती है तो आप तत्परता क्यों नहीं दिखा रहे? हम शांति चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि शहर में 1984 सरीखे दंगे फिर से हों। शहर ने बहुत हिंसा और पीड़ा झेली है। अब 1984 को ना दोहराने दीजिए।’’ 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में दिल्ली में ही करीब 3000 लोग मारे गये थे।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन ने आश्वासन दिया कि वह आज ही पुलिस आयुक्त के साथ बैठक करेंगे और सारी वीडियो क्लिप देखकर प्राथमिकी दर्ज करने के विषय पर सोच-समझकर निर्णय लेंगे और गुरुवार को अदालत को इस बारे में जानकारी देंगे। हालांकि, अदालत ने साफ किया कि वह अपने को तीनों भाजपा नेताओं की वीडियो क्लिप तक सीमित नहीं रख रही और वह अन्य क्लिप भी देखेगी।

अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) से जुड़ी सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने और संलिप्त लोगों को गिरफ्तार करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा, ‘‘हम नाराज नहीं हैं। हम दुखी हैं। एक संवैधानिक अदालत की पीड़ा बहुत गंभीर है और सभी को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।’’

सुनवाई के दौरान अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और पुलिस उपायुक्त (अपराध शाखा) राजेश देव से पूछा कि क्या उन्होंने भाजपा नेता कपिल मिश्रा के कथित नफरत फैलाने वाले भाषणों के वीडियो क्लिप देखे हैं। दिल्ली पुलिस की तरफ से पक्ष रख रहे मेहता ने कहा कि वह टीवी नहीं देखते और उन्होंने ऐसे क्लिप नहीं देखे हैं। देव ने कहा कि उन्होंने भाजपा नेताओं – अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के वीडियो देखे हैं लेकिन मिश्रा के क्लिप नहीं देखे हैं। पुलिस अधिकारी के बयान पर न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा, ‘‘दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली से मैं वाकई हैरान हूं।’’ खचाखच भरी अदालत में शोर बढ़ने पर पीठ ने कहा कि मर्यादा बनाए रखें अन्यथा बंद कमरे में सुनवाई की जाएगी।