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बदलते परिवेश में करवाचौथ व्रत का भी हो गया है ग्लोबलाइजेशन

प्रयागराज, बदलते परिवेश में करवाचौथ व्रत का भी अब ग्लोबलाइजेशन हो गया है। अब करवाचौथ का पर्व देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। करवाचौथ के दिन सुहागिन स्त्रियां पति की दीर्घायु और खुशहाल दाम्पत्य जीवन की कामना के लिए बुधवार को सदियों पुराना करवाचौथ का पारंपरिक व्रत रखेंगी।

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवाचौथ पर्व पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था लेकिन आज यह पति.पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक दौर भी इस परंपरा को डिगा नहीं सका है बल्कि इसमें अब ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति की गहराई दिखाई देती है। करवाचौथ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाने लगा है।

करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। करवा यानी मिट्टी का बरतन और चौथ यानि चतुर्थी। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। इस व्रत में भगवान शिव शंकर माता पार्वती कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। माना जाता है करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है। उनके घर में सुख, शान्ति, समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।