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मायावती का बीजेपी प्रेम, बिहार मे बीएसपी ओवैसी गठबंधन को पड़ रहा भारी

नई दिल्ली, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का के बीजेपी प्रेम, बिहार मे बीएसपी ओवैसी गठबंधन को भारी पड़ रहा है.

बीएसपी के कुछ विधायकों के समाजवादी पार्टी से मिल जाने के बाद मायावती ने उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान परिषद चुनाव के संदर्भ में गुरुवार को बयान जारी किया था. उनका कहना था, “जब यहां एमएलसी के चुनाव होंगे तो सपा के दूसरे उम्मीदवार को हराने के लिए बसपा अपनी पूरी ताक़त लगा देगी. और इसके लिए चाहे पार्टी के विधायकों को इनके (सपा) उम्मीदवार को हराने के लिए बीजेपी या अन्य किसी भी विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को अपना वोट क्यों न देना पड़ जाए, तो भी देंगे.”

दरअसल, मायावती का ताज़ा बयान बिहार के दलितों के लिए भी एक इशारा है. सूत्रों के अनुसार, बिहार में एनडीए की बुरी स्थिति और तेजस्वी यादव के समर्थन मे उमड़ते जनसैलाब को कम करने के लिये, बीजेपी ने मायावती से यह इशारा बिहार में जारी विधानसभा चुनाव के लिए करवाया है. जिससे दलित वोटों को रोका जा सके. लेकिन बिहार चुनाव में मायावती का ये बयान बीएसपी ओवैसी गठबंधन को भारी पड़ रहा है.

मायावती बिहार में हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजसिल-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), मोदी सरकार में रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा, एक और पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं.

मायावती के बीजेपी समर्थन वाले बयान के बाद बिहार में अब लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि इस मामले में असदुद्दीन ओवैसी का क्या कहना है.मायावती के ताज़ा बयान के बाद, सत्ता में मुसलमानों की भागीदारी की बात करवाले उनके गठबंधन और उनकी पार्टी का क्या रुख़ होगा. लेकिन अभी तक ओवैसी की तरफ़ से इस मामले में कोई बयान नहीं आया है.

समाजवादी पार्टी को हराने के लिए ही सही, लेकिन बीजेपी को समर्थन देने की बात मायावती कैसे कर सकती हैं और ओवैसी कैसे इस मामले पर ख़ामोश रह सकते हैं. जबकि कि ओवैसी दावा करते हैं कि उनकी पूरी राजनीति हिंदुत्व शक्तियों और ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ है तो फिर उनके गठबंधन का एक घटक बीजेपी को सपोर्ट करने की बात कैसे कर सकता है.

बिहार चुनाव के पहले चरण में 71 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं, अभी दो चरण के चुनाव बाक़ी हैं. ओवैसी की पार्टी का सबसे ज़्यादा प्रभाव सीमांचल (किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया) के इलाक़ों में है और वहां आख़िरी चरण में सात नवंबर को चुनाव होने हैं. मौजूदा विधानसभा में किशनगंज से उनकी पार्टी के एक विधायक भी हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में किशनगंज की सीट से उनकी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव तो हार गए थे लेकिन उन्हें क़रीब तीन लाख वोट आए थे.

सीमांचल के इलाक़ों में मुसलमान वोटरों की एक बड़ी तादाद रहती है, और एआईएमआईएम और ख़ासकर ओवैसी की लोकप्रियता वहां पिछले कुछ सालों में बहुत बढ़ी है. ऐसे में वहां के मुसलमान वोटर यह जानना चाहते हैं कि मुसलमानों की बात करने वाले ओवैसी, मायावती के इस बयान पर क्यों ख़ामोश हैं?”